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पंचम पिण्डेषणा अध्ययन
अर्थ - शालूक (कमल-कन्द), विरालिय (पलासकन्द), कुमुद-नाल, उत्पलनाल, मृणाल (कमल तन्तु-दंडनाल), सर्षप-नाल (सरसों का पत्रयुक्त नाल), इक्षखण्ड (गन्ने की गंडेरी), ये सब अनिवृत अर्थात् शस्त्र-परिणत या अग्निपक्व न हों तो साधु ग्रहण न करे । तथा वृक्ष के या तृण के, अथवा किसी प्रकार की किसी भी हरितकाय के कच्चे पत्ते अथवा कच्ची कोंपल आदि जो सचित्त हों तो उन्हें साधु त्याग करे । तथा जिसके बीज नहीं पके हैं ऐसी सेम, मूग, मटर आदि की फली जो कच्ची हो, अथवा एक बार भूनी हुई फली हो-जिसमें पकने या नहीं पकने की शंका हो - तो ऐसी फली आदि को देनेवाली स्त्री से साधु कहे कि ऐसी वस्तु मुझे नहीं कल्पती है। भावार्थ-साधु को किसी भी प्रकार की सचित्त वस्तु प्राप नहीं है।
(२१-२२-२३-२४) कवित्ततैसे ई न ताचे काचे बेर वंस करेला औ श्रीपर्णी के फल तिल-पापरी को तजिये, नोमफल तंदुल को आटो औ धोवन नीर सचित भयो सो उन्ही उपक वरजिये । तिल सरसों को खल, कोट मातुलिग फल, मूला, मूली-मूल, काचे मनसों न भजिये, त्यों ही फल-चूर बीज-चूर औ पियाल फल बहेरा वरजिये औ सचित समझिये।
अर्थ - इसी प्रकार जो उबाला हुआ न हो वह बेर, वंश-कटीर, करेला, काश्यप-नालिका (श्री पीफल या कसेरु) तथा अपक्क तिलपपड़ी और कदम्ब-फल इन सभी कच्चे या अनग्निपक्व का साधु त्याग करे। इसी प्रकार चावल आदि का काल का पिसा हुआ आटा, पूरी तरह न उबला पानी, तिलका पिष्ट (तिलकूटा),
ई-साग और सरसों की खली अपक्व का परित्याग करे। अपक्व और शस्त्र से अपरिणत कपित्य (कैथ, कवीट) बिजौरा, मूला और मूली के गोल टुकड़े को मनसे भी इच्छा न करे । इसी प्रकार अपक्व फल-मन्यु (फलों का चूर्ण) और बीजमन्यु (बीजों का चूर्ण), बहेड़ा और प्रियाल फल (अचार की चिरोंजी) का भी त्याग करे ।