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नवम विनय-समाधि अध्ययन
(चतुर्थ उद्देशक)
(१)
चौपाई- आयुष्मन, मैंने यह सुना, उन भगवान् ने ऐसा मना ।
चार विनय के समाधिस्थान, कहे थविर श्री वीर भगवान् ।।
अर्थ-हे आयुष्मन्, मैंने सुना है उन भगवान् ने इस प्रकार कहा-इस निर्ग्रन्थप्रवचन में स्थविर भगवन्त ने विनय-समाधि के चार स्थानों का प्रज्ञापन किया है।
चौपाई- सो वे कौन हैं चारों थान, जिससे हो मेरा कल्यान ।
करहु कृपा मो पर गुरुदेव, कहहु जासतें लहुँ सुख एव ।।
अर्थ-वे विनय-समाधि के चार स्थान कौन से हैं, जिनका स्थविर भगवन्त ने प्रज्ञापन किया है।
चौपाई- जिन्हें कहा स्थविर भगवंत, व चारों थानक इह भंत ।
विनय और श्रुत को नु समाधि, तपसमाधि, आचार-समाधि ।। दोहा- विनय और अत में तथा, तप में वा आचार ।
इनमें रत इन्द्रिय-जयी, पंडित गुणी विचार । पुतविलम्बित
विनय में श्रत में तप में तथा, मुनि अचारहु में निज-आत्म में। रहत है जु रमावत सर्वदा, वह जितेन्द्रिय होवत परिता ।।
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