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नवम विनय-समाधि अध्ययन
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हरिगीतक- विनयादि साधि समाधि के गुन, छुटत जनम क मरन सों,
सब माति अथवा नरक आदि रु टरत दुरगति-परन सों। पर अचल पावत सिडको, अथवा करम का बधि रहे,
तो अलप मोही, महासंपति देवगति को लहत हैं। अर्थ-जो साधु इन चारों प्रकार के समाधि स्थानों का पालन करता है, वह जन्म-मरण से मुक्त होता है, नरक आदि दुर्गतियों से छूट जाता है । वह या तो उसी भव से सिद्धपद पाता है अथवा अल्प कर्मवाला महधिक देव होता है।
ऐसा मैं कहता हूं। नवम विनय-समाधि अध्ययन का चतुर्थ उद्देशक समाप्त ।