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नवम विनय-समाधि अध्ययन
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रोलाछन- जो मुनि गुरुको सेव करत मलि मांति निरन्तर,
बोगिन-मत-परवीन, कुसल, अभिगम-सेवा-पर। पूरब-कृत रज-करम ध्वंस करि सो हित कामी,
अतुलनीय भास्वती सिडिगति को हस्वामी ॥ अर्ष-इस लोक में गुरु की निरन्तर सेवा कर, जिनमत में निपुण और अभिगम (विनय-प्रतिपत्ति) में कुशल साधु पूर्वकृत रज और मल (द्रव्य और भावकर्म) को दूर कर प्रकाशमान अनुपम सिद्धगति को प्राप्त होता है।
ऐसा मैं कहता हूं। नवम विनयसमाधि अध्ययन में तृतीय उद्देशक समाप्त ।