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नवम विनय-समाधि अध्ययन
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(२४) कवित्त
गुरु अनुसासन में वह अनुसार सबा, आगम घरमह के ज्ञाता अति नीके है, बिनय धरम हू में परम प्रवीन भये, जिनमें सुलन्छ सारे सहज जती के हैं। दुस्तर जगत-जलनिधि को तरत तेई, करत विनास सब करम कृती के है, हुये अरु होवत है, होहिंगे ऐसे जना प्रापत करैया परमोत्तम गती के हैं।
अर्ष-जो गुरु के आज्ञाकरी हैं, जिनने धर्म का स्वरूप सुना और जाना है, जो विनय में कोविद (चतुर हैं), वे साधु इस दुस्तर संसार-समुद्र को तरकर और कर्मों का क्षयकर उत्तम गति को प्राप्त होते हैं ।
ऐसा मैं कहता हूँ। नवम विनय-समाधि अध्ययन में द्वितीय उद्देशक समाप्त ।