________________
अष्टम आचार - प्रणिधि अध्ययन
१८१
के बिल आदि; ५ पनक सूक्ष्म - अनेक वर्ण की काई, लीलन-फूलन आदि; ६ बीज सूक्ष्म- तुषमुख, सरसों आदि के अग्रभाग पर होने वाले सूक्ष्म जीव; ७ हरित सूक्ष्मभूमि से तत्काल निकलने वाला दुर्ज्ञेय अंकुर और ८ अंड सूक्ष्म - मधु मक्खी, कीड़ी, मकड़ी आदि के अंडे, ये आठ प्रकार के सूक्ष्मशरीर जीव हैं ।
बोहा
अर्थ - सब इन्द्रियों से सावधान साधु इस प्रकार इन सूक्ष्म जीवों को सब प्रकार से जानकर अप्रमत्त भाव से उनकी यतना करे ।
चौपाई
(१६)
या विधि इनको जानि के, संजति सर्वाह प्रकार । इंद्रिय-जयी, करं जतन सब वार ।
सावधान
दोहा -
अर्थ - मुनि प्रतिदिन निश्चित रूप से यथासमय पात्र, कम्बल, शय्या, उच्चारभूमि ( मल-मूत्र उत्सर्ग का स्थान ) संस्तारक (विस्तर) और आसन का प्रतिलेखन करे ।
(१७)
वसन सयन भाजन अरु आसन, अरु उच्चार भूमि संचारन । योग-सहित प्रतिलेखन कीजे, नित निश्चित, बाधा नह दीजे ।
बोहा
(१८)
अचित अवनि प्रतिलेख मुनि, कफ मल मूत पसेव । नासा - मल आदिक तहां, परठि जतन-जुत देय ॥
अर्थ-संयमी मुनि जीव-रहित प्रासुक भूमि का प्रतिलेखन कर वहां उच्चार :ल), प्रस्रवण (मूत्र), श्लेष्म (कफ), शृंघाण ( नासिका - मल ) एवं जल्ल ( शरीर के अन्य मल) का उत्सर्ग करे ।
(१९)
करि प्रवेस पर भवन में, जल-भोजन को लंन । जतनहि ठहरे, मित कहै, रूप देखि चित्त दं न ॥
अर्थ – मुनि जल या भोजन के लिए गृहस्थ के घर में प्रवेश करके उचित स्थान में खड़ा रहे, परिमित बोले और वहां स्त्री आदि के रूप को देखकर उनमें मन को चंचल न करे ।