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सप्तम वाक्य शुद्धि अध्ययन
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कविस
कीनी बस जोई है,
करि के परख पूरी बोलत विमल जैन इन्द्रिय-समूह जीति कोह मान माया लोह चारिउँ कसाय टारी जाके प्रतिबन्ध कोऊ रह्यो नहीं कोई है। पूरव के कीने कर्म-मल को चुनन कर आतम सों दूरि करि देत साधु सोई है, यहां जस पावे, उत उत्तम गतीकों जायें, इह परलोक सो अराध लेत बोई है।
अर्थ — गुण-दोष की परख कर बोलने वाला, इन्द्रियों को जीतनेवाला, चारों कषायों से रहित, अनिश्रित ( सांसारिक प्रपंचों से मुक्त, मध्यस्थ ) साघु पूर्वकृत पापमल को नष्ट कर इस लोक तथा परलोक दोनों की सम्यक प्रकार आराधना करता है, अर्थात् कर्मक्षय कर सिद्धलोक को प्राप्त करता है ।
ऐसा मैं कहता हूं।
| सप्तम वाक्यशुद्धि अध्ययन समाप्त |