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पंचम पिण्डेषणा अध्ययन
___ अर्ष-यदि अशन, पानक, खाद्य और स्वाद्य पदार्थ पानी, उत्तिंग (कीटिका नगर) और पनक (लीलन-फूलन) पर निक्षिप्त (रखा हुआ) हो तो वह भक्त-पान संयमी जनों के लिए अकल्पनीय होता है । इसलिए मुनि देने वाली स्त्री से कहे कि ऐसा आहार मेरे लिए नहीं कल्पता है।
(६१-६२)
चौपाई- खाद्य स्वाध भोजन जल जोई, आगी-ऊपर रख्यो ज होई ।
अथवा ताहि परसि करि देई, मुनिहिं न कलपत अन-जल तेई॥ देनहारि-सों मनि कह सोई, ऐसो नहिं कलपत है मोई । सो मैं यह आहार न लेऊ, जो कल्पै ताही के सेऊ ।।
अर्थ-यदि अशन, पानक, खाद्य और स्वाद्य अग्नि पर रखा हुआ हो और उसका (अग्नि का) स्पर्श कर देवे तो वह भक्त-पान संयतों के लिए अकल्पनीय है। इसलिए मुनि देनेवाली स्त्री से कहे कि ऐमा आहार मेरे लिए नहीं कल्पता है ।
(६३---.६४)
है में इंधन डार, अथवा निकार कर, अलप बहुत काठ चूल्हे में गिराय के, आगि को बुझाय, ताप थित पात्र ह तें कछु अन्न कों निकार छींटा पानी को दिराय के। आगि-थित अन्न ताको आन पात्र-मांहि डार, आगि ते ऊतारि पात्र देत मुनिराय के, ऐसो अन-पानी सो तो साधु के न जोग जानी, देती सों कहै कि ऐसो नाहीं
मेरे लायके। अर्थ-इमी प्रकार चूल्हे में इन्धन डालकर, चूल्हे रो इन्धन निकालकर, चूल्हे को उज्ज्वलित कर (सुलगा कर), प्रज्वलित (प्रदीप्त) कर, बुझाकर, आग पर रखे हुए पात्र में से आहार निकालकर, पानी का छींटा देकर पात्र को टेढ़ा कर, उतार कर देवे तो वह भक्त-पान संयमी जनों के लिए अकल्पनीय है, इसलिए मुनि देनेवाली स्त्री से कहे कि यह आहार मेरे लिए नहीं कल्पता है ।