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पंचम पिण्डेषणा अध्ययन
चौपाई - खाद्य स्वाध भोजन अरु पाना, पुण्य-हेतु-कृत सुना कि जाना ।
ऐसो भोजन पान जु आही, सो संजति को कलपत नाहीं॥ देनहारि-सों कह मुनि सोई, ऐसो नहिं कलपत है मोई ।
सो मैं यह आहार न लेऊ, कल्पं जो ताही कू सेऊ ॥
अर्थ ----यह अशन, पानक, खाद्य और स्वाद्य पदार्थ पुण्यार्थ तैयार किया हुआ है, यह बात मुनि जान लेवे या सुन लेवे तो वह भक्त-पान संयतों के लिए अकल्पनीय है। इसलिए मुनि देने वाली स्त्री से कहे कि इस प्रकार का आहार मेरे लिए नहीं कल्पता है।
(५१-५२) चौपाई- खाध स्वाध भोजन अरु पाना, जाचक-हित-कृत सुना कि जाना।
ऐसो भोजन-पान जु आहो, सो संजति को कलपत नाहीं॥ देनहारि-सों मुनि कह सोई, ऐसो नहिं कलपत है मोई ।
सो मैं यह आहार न लेऊ, कल्पै जो ताही . सेऊ ॥
अर्थ-यह अशन पानक, खाद्य और स्वाद्य पदार्थ वनीपकों (भिखारियों) के लिए तैयार किया हुआ है, यह बात मुनि जान ले या सुन लेवे तो वह भक्त-पान संयतों के लिए अकल्पनीय है। इसलिए मुनि उसे देने वाली स्त्री से कहे कि इस प्रकार का आहार मेरे लिए नहीं कल्पता है ।
(५३-५४) चौपाई- खाध स्वाध भोजन अरु पाना, श्रमण-हेतु-कृत सुना कि जाना ।
ऐसो भोजन-पान जु आही, सो संजत को कलपत नाहीं॥ देनहारि-सों मुनि कह सोई, ऐसो नहिं कलपत है मोई ।
सो मैं यह आहार न लेऊ, जो कल्पै ताही कू सेऊ ॥
अर्ष यह अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य पदार्थ श्रमणों के लिए तैयार किया हुआ है, यह बात मुनि जान ले या सुन लेवे तो वह भक्त-पान संयतों के लिए अकल्पनीय है । इसलिए मुनि उसे देने वाली स्त्री से कहे कि इस प्रकार का आहार मेरे लिए नहीं कल्पता है।