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चतुर्थ षड्जीवनिका अध्ययन
भली भांति से भाख्यो याहि, भली भांति परकास्यो आहि । सो पढ़नो उत्तम है मोय, धरम ज्ञान को पाठ ज सोय ॥२॥ वे हैं ये खट् जीव निकाय, पृथिवी जल अरु तेज ज काय ।
वायु और वनस्पतिकाय, छठा भेद प्रसकाय लहाय ॥३॥
अर्थ-षट्जीवनिका नामक अध्ययन--जो काश्यपगोत्री श्रमण भगवान महावीर द्वारा प्रवेदित, सु-आख्यात और सु-प्रज्ञप्त है, जिस धर्म-प्रज्ञप्ति अध्ययन का पठन मेरे लिए श्रेयस्कर है-वे छह जीवनिकाय इस प्रकार हैं-पृथिवीकायिक, अपकायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक और त्रसकायिक ।
दोहा- शस्त्र-घात को छोड़कर, पृथिवी कही सचित्त ।
रहहिं अनेकों जीव तह, भिन्न-भिन्न सब सत्त ॥ अर्थ-शस्त्राघात के सिवाय पृथिवी सचेतन कही कई है, उसमें अनेक जीव हैं और सबकी भिन्न-भिन्न सत्ता है।
(५)
दोहा- शस्त्र-घात को छोड़कर, जलको कहा सचित्त ।
रहहिं अनेकों जीव तह, भिन्न-भिन्न सब सत्त ॥ अर्थ-शस्त्राघात के सिवाय जल सचेतन कहा गया गया है, उसमें अनेक जीव हैं और सबकी भिन्न-भिन्न सत्ता है ।
बोहा- शस्त्र-घात को छोड़कर, कहि है अगनि सचित्त ।
रहहिं अनेकों जीव तह, भिन्न-भिन्न सब सत्त । अर्थ ---शस्त्राघात के सिवाय अग्नि सचेतन कही गई है, उसमें अनेक जीव हैं और सबकी भिन्न-भिन्न सत्ता है।
दोहा- शस्त्र-घात को छोड़कर वायू कही सचित्त ।
रहहिं अनेकों जीव तह, भिन्न-भिन्न सब सत्त । अर्ष-शस्त्राघात के सिवाय वायु सचेतन कही गई है, उसमें अनेक जीव हैं और सबकी भिन्न-भिन्न सत्ता है।