Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
View full book text
________________ 241 - 2 -0-05 श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन in x . ___ संसार-पद के पांच निक्षेप होते हैं... द्रव्य, क्षेत्र, काल, भव और भावसंसार... अर्थात् - जहां जीव भव-भवांतर में संसरण = परिभ्रमण करतें हैं ऐसे उस संसार-पद के पांच निक्षेप होते हैं... 1. द्रव्य संसार = विभिन्न जीव आदि द्रव्यों के संसरण स्वरूप... 2. क्षेत्र संसार = जिस क्षेत्र में जीव आदि द्रव्यों का संसरण हो वह... कालसंसार = जिस काल में जीव आदि द्रव्यों का संसरण हो वह काल.... भव संसार = नारक, तिर्यंच, मनुष्य एवं देवगति के नाम से चार प्रकार की आनुपूर्वी के उदय से भव-भवांतर में जीवों के संक्रमण को भवसंसार कहतें हैं.. भाव संसार = चारगति स्वरूप संसार के स्वभाववाले गति-कषाय-लिंग आदि 21 औदयिकभाव के परिणाम स्वरूप भावसंसार... अर्थात्- प्रकृति स्थिति अनुभाग (रस) एवं प्रदेशबंध के प्रदेशों के विपाक (फल) का अनुभव... इस प्रकार द्रव्यादि भेद से संसार के पांच निक्षेप-प्रकार है... अथवा प्रकारांतर से द्रव्यादि भेद से संसार चार प्रकार का है... यहां संसार का अर्थ है संसरण याने परिवर्तन... द्रव्य परिवर्तन = अश्व को छोडकर हाथी को ग्रहण करना... क्षेत्र परिवर्तन = गांव को छोडकर नगर की और जाना... काल परिवर्तन = वसंत ऋत पूर्ण होने के बाद ग्रीष्म ऋत का आना... 4. भाव परिवर्तन = औदयिकभाव का त्याग करके औपशमिकादि भावों को धारण करना... ___ इस संसारमें कर्मो के परवश होकर जीव संसरण = परिभ्रमण करतें हैं, अतः अब कर्म का स्वरूप कहतें हैं... नि. 183-184 कर्म-पद के दश निक्षेप होते हैं... 1. नाम कर्म, 2. स्थापना कर्म, 3. द्रव्य कर्म, 4. प्रयोग कर्म, 5. समुदान कर्म, 6. ईर्यापथिक कर्म, 7. आधा-कर्म, 8. तपःकर्म, 9. कृतिकर्म, और 10. भावकर्म... नामकर्म = कर्मो के अर्थ से शून्य ऐसे नाम मात्र को नामकर्म कहते हैं... 2. स्थापना कर्म = मिट्टी का शिल्पकार्य और कागज-पत्ते आदि में कीये हुए चित्र, प्रतिमा, आकृति स्वरूप कर्मवर्गणाओं की सद्भाव या असद्भाव स्वरूप स्थापना... द्रव्यकर्म = तद्व्यतिरिक्त के दो भेद... 1. द्रव्य कर्म 2. नोद्रव्य कर्म...