Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ 304 1 - 4 - 1 - 1 (139) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन शुद्ध है, नित्य है, शाश्वत है और खेदज्ञ याने परोपकारक तीर्थंकर प्रभुजी ने कहा है... तथा उत्थित या अनुत्थित, उपस्थित या अनुपस्थित, उपरतदंडवाले या अनुपरतदंडवाले, उपधिवाले या बिना उपधिवाले, संयोगरक्त या असंयोग में रक्त, इन सभी को यह धर्म कहा है... यह धर्म तथ्य है, और तथास्वरूप है... यह धर्म इस आगमसूत्र में विशेष प्रकार से कहा है // 139 // IV टीका-अनुवाद : गौतमस्वामीजी (सुधर्मस्वामीजी) कहतें हैं कि- तीर्थंकर प्रभुश्री महावीर स्वामीजी से तत्त्व जानकर श्रद्धेय वचनवाला ऐसा मैं हे जंबू ! तुम्हें कहता हुं... अथवा शौद्धोदनि के शिष्य याने बुद्ध को मान्य क्षणिकवाद के निराश के लिये कहते हैं कि- जिन्हों ने पूर्वकाल में श्री वीरप्रभुजी के मुख से तत्त्व का स्वरूप सुना है वह मैं- सुधर्मस्वामी हे जंबू ! तुम्हें कहता हुं... अथवा तो जिसकी श्रद्धा करने पर सम्यक्त्व होता है, उस तत्त्व को मैं तुम्हें कहता हुं... जैसे कि- भूतकाल में जो तीर्थंकर हो चूके हैं, तथा वर्तमानकाल में जो सीमंधरस्वामीजी आदि विद्यमान हैं, तथा भविष्यत्काल में जो भी तीर्थंकर प्रभुजी होंगे... अर्थात् भूतकाल अनंत पुद्गल परावर्त स्वरूप है अत: अतीतकाल में अनंत तीर्थंकर हो चूके हैं... तथा भविष्यत्काल भी अनंतानंत पुद्गल परावर्त स्वरूप है, अतः अनागतकाल में भी अनंतानंत तीर्थंकर होएंगे... तथा वर्तमानकाल में प्रज्ञापक की अपेक्षा से समयक्षेत्र स्वरूप अढी द्वीप में जघन्य से बीस और उत्कृष्ट पद से एकसो सित्तेर (170) तीर्थंकर होते हैं... ' जैसे कि- पांच महाविदेह क्षेत्र में बत्तीस बत्तीस विजय (क्षेत्र) हैं अतः बत्तीस बत्तीस तीर्थंकर प्रभुजी और पांच भरत क्षेत्र में एक एक तथा पांच ऐरावत क्षेत्र में भी एक एक, अत: 32 x 5 = 160 + 5 + 5 = 170 तीर्थंकर... तथा पांच महाविदेह क्षेत्र में सीता एवं सीतोदा महानदी के दोनों तट याने किनारे पर एक एक, अत: एक महाविदेह में चार तीर्थंकर... अब पांच महाविदेह में चार चार अत: 5 x 4 - 20 तीर्थंकर... तथा भरत एवं ऐरावत क्षेत्र में एकांत सुषम आदि काल में तीर्थंकरों का अभाव होता है... कितनेक आचार्य म. ऐसा कहतें हैं कि- मेरु पर्वत से पूर्व एवं अपर याने पश्चिम दिशा के विदेह क्षेत्र में एक एक तीर्थंकर होतें हैं, अतः एक महाविदेह में दो तीर्थंकर हो तब 5 x 2 = 10 तीर्थंकर जघन्य पद से होते हैं... अन्यत्र भी कहा है कि- अढी द्वीप प्रमाण समयक्षेत्र में उत्कृष्ट से एकसो सित्तेर (170) एवं जघन्य पद से दश (10) तीर्थंकर होते हैं तथा पहले जंबूद्वीप में चौतीस (34) तीर्थंकर दुसरे धातकीखंड में अडसठ (68) तीर्थंकर एवं तीसरे आधे पुष्कर द्वीप में भी 68 तीर्थंकर होतें हैं... इस प्रकार उत्कृष्ट पदसे 170 तीर्थंकर होतें हैं...