Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan

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Page 458
________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 1-5 - 4 - 1 (189) 417 ___ यद्यपि सभी साधुओं को ऐसा दुर्यात और दुष्प्रतिक्रांत नहि होता... इसलिये कहतें हैं कि- जो साधु अव्यक्त याने श्रुत एवं उम्र से अपरिपक्व है; ऐसे भिक्षु को हि दुर्यात और दुष्प्रतिक्रांत होता है... श्रुत-अव्यक्त याने स्थविरकल्प में रहा हुआ साधु जब तक आचार प्रकल्प (निशिथ) सूत्र को अर्थ से नहि जानता तब तक वह अव्यक्त है... तथा जिनकल्पवाले चौदह पूर्वोमें से नववे पूर्व की तीसरी वस्तु पर्यंत के सूत्रार्थ के ज्ञाता न हो तब तक अव्यक्त होतें हैं... तथा उम्र से स्थविरकल्प में सोलह (16) वर्ष पर्यंत के साधु अव्यक्त हैं तथा जिनकल्पवाले तीस (30) वर्ष पर्यंतवाले अव्यक्त है... यहां चतुभंगी होती है.... 1. श्रुत से अव्यक्त- उम्र से अव्यक्त... साधु को संयम एवं आत्म विराधना होने के कारण से एकचर्या उचित नहि है... श्रुत से अव्यक्त- उम्रसे व्यक्त... साधु को भी एकचर्या उचित नहि है, क्योंकि- वह अगीतार्थ होने के कारण से संयम एवं आत्म-विराधना की संभावना है... श्रुत से व्यक्त- उम्र से अव्यक्त... साधु को भी एकचर्या उचित नहि है... क्योंकिउम्र छोटी होने के कारण से सभी लोगों के परिभव का पात्र हो शकता है... और विशेष प्रकार से चोर एवं कुमतवालों से पराभव होने की संभावना है... श्रुत से व्यक्त- उम्रसे व्यक्त... साधु को उचित कारणों के होने पर भिक्षु-प्रतिमा, एकाकी विहार एवं उग्र विहार की अनुमती दी जाती है... ऐसे उभय प्रकार से व्यक्त साधु को भी कारण के अभाव में एकचर्या की अनुमति नहि है. क्योंकि- एकचर्या में तीन गुप्तीयां, एवं ईर्यासमिति, भाषासमिति तथा एषणासमिति आदि में अनेक दोषों की संभावना है... जैसे कि- एकाकी विहार करनेवाला साधु जब ईर्यासमिति का पालन करता है, तब कुत्ते आदि के उपद्रव होने की संभावना है... और जब कुत्ते आदि के उपद्रव से बचने का प्रयत्न करता है तब ईर्यासमिति का पालन नहि हो शकता... इस प्रकार अन्य समितिओं में भी दोष की संभावना होती है... तथा आहार का अजीर्ण होने पर अथवा वायु आदि के क्षोभ याने विषमता होने पर रोग-व्याधि उत्पन्न होने से संयम विराधना, आत्मविराधना एवं प्रवचन (शासन) की हीलना होने की संभावना है... इस स्थिति में यदि कोइ करुणालु गृहस्थ उस साधु की सेवा करता है, तब अज्ञानता . के कारण से छह जीवनिकाय के जीवों का वध करता है, अतः संयम में बाधा (विराधना)

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