Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ 4741 -5-6-7 (185) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन मीठा एवं अम्ल रसवाला है, न गुरु, लघु, कोमल, कठोर, स्निग्ध, रुक्ष, शीत, एवं उष्ण स्पर्श वाला है, न स्त्री, पुरुष एवं नपुंसक वेद वाला है अर्थात् शब्द, रूप रस, गंध, स्पर्श आदि विशेषणों से रहित है। इसलिए मोक्ष या मुक्तात्मा को अपद कहा गया है। पद अभिधेय को कहते हैं, अतः इसका यह अर्थ हुआ कि- मोक्ष का कोई भी अभिधेय नहीं है। क्योंकिवहां वाच्य विशेष का अभाव है। इसी विषय को और स्पष्ट करते हुए सूत्रकार महर्षि सुधर्म स्वामी आगे का सूत्र कहतें हैं... I सूत्र // 7 // // 185 // 1-5-6-7 से न सद्दे, न रूवे, न गंधे, न रसे, न फासे इच्चेव तिबेमि // 185 // . II संस्कृत-छाया : सः न शब्दः, न रूपः, न गन्धः, न रसः, न स्पर्शः, इति एव इति ब्रवीमि // 185 // III सूत्रार्थ : __ वह मुक्तात्मा न तो शब्द स्वरूप है, न तो रूप स्वरूप है, न गंध स्वरूप है, न रस स्वरूप है और न तो स्पर्श स्वरूप है... इत्यादि मैं तुम्हें कहता हुं... // 185 // IV टीका-अनुवाद : वह मुक्तात्मा न तो शब्द स्वरूप है और न तो रूप स्वरूप है, न गंध स्वरूप है और न तो रस स्वरूप है और न हि स्पर्श स्वरूप है, अर्थात् इतने प्रकार के प्रतिषेध के द्वारा यह निश्चित हुआ कि- जगत् की दृष्टि से मुक्तात्मा वर्णादि-पदों से पर हैं अर्थात् अपद हैं; अत: उनको कोइ भी प्रकार से कह नहि शकतें, वचन के विषय नहि हो शकतें... यहां इति शब्द अधिकार की समाप्ति का सूचक है और ब्रवीमि का अर्थ पूर्ववत् जानीयेगा... अर्थात् पंचमगणधर श्री सुधर्मस्वामीजी अपने अंतेवासी शिष्य जंबूस्वामीजी को कहते हैं किचरमतीर्थपति श्री वर्धमानस्वामीजी के मुखारविंद से मैंने जो पंचाचार की बातें सुनी है वह सभी बातें हे जंबू ! तुम्हें अनुग्रहबुद्धि से क्रमशः कहता हूं... इस प्रकार यहां सूत्रानुगम पूर्ण हुआ, और सूत्रानुगम के पूर्ण होने पर अपवर्ग को प्राप्त नामक उद्देशक पूर्ण हुआ और अपवर्गावाप्त होने पर नयवक्तव्यता भी अतिदेश से पूर्ण हुइ... इस प्रकार “लोकसार" नाम का पांचवा अध्ययन पूर्ण हुआ...