Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ 420 // 1-5-4-1(169); श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन पैदा होती हैं कि- यह अकेला क्यों घूमता है ? फिर उसके सम्बन्ध में झूठी-सच्ची अनेक बातें होती हैं और एकाकी होने के कारण अनेक परीषह उपस्थित हो सकता हैं, इन परिस्थितिओं में दृढ़ता न रहने के कारण वह साधु कभी संयम पथ से च्युत भी हो सकता है। इसी दृष्टि को सामने रख कर आगम में अगीतार्थ साधु को अकेले विचरने का आदेश नहीं दिया है। उत्सर्ग-माग से अगीतार्थ-साधु को एकाकी विहार करना उचित नहि है... परन्तु यदि विशेष परिस्थिति में या किसी विशेष कारण से एकाकी विहार करना पड़े तब गुरु की आज्ञा से गीतार्थ मुनि एकाकी विहार करते हैं... यहां शास्त्र की आज्ञा स्वरूप गुरु का निर्देश होने से कोइ दोष नहि है। क्योंकि- वह साधु परिस्थिति वश जा रहा है तथा गुरु की आज्ञा से जा रहा है और वह साधु गीतार्थ होने से आगम मर्यादा से भी भली-भांति परिचित है और शास्त्रीय मर्यादा के अनुसार ही विचरण करता है, इसलिए उसको संयम विराधना की संभावना नहीं रहती। अव्यक्त-अगीतार्थ साधु की श्रुत और वय की अपेक्षा से चतुर्भंगी होती है। 1- श्रुत और वय से अव्यक्त-श्रुत में आचार-प्रकल्पागम का अर्थ से अनुशीलन नहीं करने वाला एवं 16 वर्ष की आयु वाला साधु श्रुत एवं वय से अव्यक्त कहलाता है। श्रुत से अव्यक्त और वय से व्यक्त-आचार के अर्थ ज्ञान से रहित, परन्तु सोलह वर्ष से अधिक आयु वाला साधु। 3- श्रुत से व्यक्त, वय से अव्यक्त-आचार के ज्ञान से युक्त किन्तु 16 वर्ष से न्यून आयुष्यवाला साधु। 4- श्रुत और वय दोनों से व्यक्त-आचार के ज्ञान से युक्त और सोलह वर्ष से अधिक आयुष्यवाला अर्थात परिपक्व अवस्था वाला साधु। . चतुर्थ भंग वाला साधु कारण विशेष से गुरु आज्ञा से अकेला भी विचर सकता है। क्योंकि- वय से परिपक्व एवं श्रुतज्ञान से सम्पन्न होने के कारण परीषह उपस्थित होने पर भी वह पंचाचार स्वरूप संयम-साधना के मार्ग में अवस्थित रह सकता है... परन्तु, अगीतार्थ मुनि ज्ञान की अपरिपक्वता के कारण परीषहों के उपस्थित होने पर असंयम के मार्ग पर भी चल सकता है। इसलिए अगीतार्थ साधु को अकेले विचरने का निषेध किया गया है। एक बात यह भी है कि- अव्यक्त अवस्था में अकेला रहने से उसका ज्ञान अधूरा रह जाता है। जैसे पूर्वकाल में माता पिता अपने बच्चे को गुरुकुल में रखकर पढ़ाते थे, आज भी कई जगह ऐसा किया जाता है। क्योंकि- गुरुकुल में शिक्षक के अनुशासन में बालक ज्ञान