Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 1 - 4 - 3 - 3 (149) 347 परिज्ञा से त्याग करें... क्योंकि- क्रोध के कारण से प्राणी सात नरकभूमी में अतिशय शीत-ठंडी, गरमी की वेदना तथा कुंभीपाक आदि पीडा के स्थानो में कर्कश स्पर्शवाले दुःखों का अनुभव करता है... तथा अतिशय दुःखवाले उस प्राणी के कारण से अन्य जीव भी दुःखी होते हैं... क्रोधादि के कारण से मात्र आत्मा हि दु:ख पाता है, ऐसा नहि है, किंतु संपूर्ण लोक के सभी जीव कर्मो की पराधीनता के कारण से शारीरिक एवं मानसिक दुःखों से पीडित होता हुआ उन दु:खो से बचने के लिये यहां वहां भागता फिरता है... अतः हे मुनी ! इस लोक को विवेक चक्षु से देखो... तथा जो जीव तीर्थंकर परमात्मा के उपदेश से परिभावित अंत:करणवाले हैं, वे विषय एवं कषाय की अग्नि को शांत करके अतिशय शीतल अर्थात् शांत हुए हैं तथा पाप कर्मो से निवृत्त होने के कारण से निदान-रहित वे मुमुक्षु जीव परम सुख के पात्र होते हैं... अर्थात् उपशम-भाव के सुखवाले प्रसिद्ध हुए हैं... अतः यहां सारांश यह है कि- राग एवं द्वेष के कारण से प्राणी दुःखी होता है... इसलिये हे विद्वान् मुनीजन ! आप आगम शास्त्र के सद्भाव को जानकर क्रोधाग्नि से मत जलो ! अर्थात् आत्मा को क्रोध स्वरूप अग्नि में मत जलाओ ! किंतु क्रोधादि कषायों का उपशम करो !!! इस प्रकार पंचम गणधर श्री सुधर्मस्वामीजी जंबूस्वामीजी को कहते हैं... V. सूत्रसार : जीवन सदा एक सा नहीं है। जन्म के बाद मृत्यु के आगमनका आरम्भ हो जाता है। प्रतिक्षण आयु न्यून होती रहती है। क्योंकि- मानव का आयुष्य परिमित है। इसलिए साधक को सदा सावधान रहना चाहिए। और विवेक पूर्वक संयम का परिपालन करना चाहिए। क्योंकिक्रोध आदि कषायों से अनेक प्रकार के द:ख-संक्लेश उत्पन्न होते हैं। क्रोध केवल वर्तमान के लिए ही दुःख रूप नहीं है, किंतु भविष्य में भी मनुष्य को दुःख की गर्ता में गिरा देता है। कषायों के वश मानव नरक आदि योनियों में अनेक दुःखों का संवेदन करता है। इसलिए साधक को दु:ख के मूल क्रोध आदि कषायों; एवं पाप कर्मों से निवृत्त होकर तप आदि संयम साधना में सदा उद्यम करना चाहिए। निष्कर्ष यह निकला कि- साधक को शांत एवं निष्पाप जीवन के साथ आकांक्षा का त्याग करना चाहिए। निराकांक्षी साधक ही समस्त कर्मों को क्षय करने में समर्थ होता है। और वास्तव में वही महाविद्वान एवं प्रबुद्ध पुरुष है कि- जो क्रोध को प्रज्वलित नहीं होने देता है। क्रोध एवं कामना रहित व्यक्ति हि सदा सुख-शान्ति का अनुभव करता है। उसे कभी भी दुःख का अनुभव नहीं होता। इसलिए मुमुक्षु पुरुष को कषाय एवं कामना का त्याग कर