Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 1-5-3 - 4 (167) 409 माताजी... तथा कोइक मनुष्य सात या आठ भवों में सकल कर्मो का क्षय करता है... जैसे कि- भरत चक्रवर्ती... और कोइक जीव अधिक से अधिक अर्ध पुद्गल परावर्त काल में सभी कर्मो का क्षय करके सिद्ध बुद्ध मुक्त सिद्धात्मा होता है... अब यहां प्रश्न यह होता है कि- अन्य प्राणी क्यों नहि सिद्ध होते हैं ? ऐसा क्यों ? तो अब कहतें हैं कि- इस संसार में कुशल ऐसे तीर्थंकरों ने जिस प्रकार जो परिज्ञा का विवेक बताया है कि- कोइक जीव को किलष्ट कर्मोदय से ऐसा कोइ अशुभ अध्यवसाय होता है कि- जो अशुभ-अध्यवसाय संसार की विचित्रता का कारण होता है, इस बात को मतिमान् मनुष्य यथावत् स्वीकार करें... यदि ऐसा न हो तब दुर्लभ मनुष्य जन्म प्राप्त करके तथा मोक्ष के अद्वितीय कारण स्वरूप धर्म को भी पाकर जो मनुष्य अशुभ कर्मो के उदय में धर्म से चुकता है; वह अज्ञानी बाल जीव संसार में गर्भ आदि याने गर्भकाल, जन्म, यौवन, इत्यादि अवस्थाओं में आसक्त होता है... जैसे कि- वह चाहता है कि-इन यौवन आदि अवस्थाओं का मुझे वियोग न हो ! अथवा तो धर्म को त्याग कर वह ऐसे पापारंभ करता है कि- जिस कर्मो से वह गर्भादि दुःख-पीडाओं के स्थानों में उत्पन्न होता है अर्थात् कर्मानुसार गर्भादि अवस्थाओं को पाता है... - तथा इस जिन-प्रवचन में कहा है कि- रूप याने चक्षुरिन्द्रिय के विषय में और “वा" शब्द से अन्य स्पर्श, रस आदि में तथा क्षण याने हिंसा और “वा" शब्द से असत्य-चौरी आदि में, यहां पांच इंद्रियों के विषय में रूप प्रधान है, तथा पुद्गल पदार्थ रूपवाले होने के कारण से “रूप” शब्द का ग्रहण कीया है... तथा आश्रवों के द्वारों में हिंसा मुख्य होने के कारण से तथा कोइ भी आश्रव में जीववध होने के कारण से "हिंसा" शब्द का ग्रहण कीया अतः कहते हैं कि- बाल याने अज्ञानी जीव रूप आदि विषयों के कारण से धर्म का त्याग करके हिंसादि पापाचरण में प्रवृत्त होकर गर्भवेदनादि दुःखों से दुःखी होता हैं... अब जो प्राणी गर्भादि में उत्पन्न होने के कारणों को जानकर धर्म का आलंबन लेकर विषयों के संग का त्याग करके हिंसा आदि आश्रवों के द्वारों से निवृत्त होता है; वह जितेंद्रिय मुनी तीनों जगत का स्वरूप जानता है, तथा ज्ञान, दर्शन एवं चारित्र स्वरूप मोक्षमार्ग का अच्छी तरह से परिचय करता है, तथा संसार के जन्म-मरणादि भय को देखता है... अर्थात् हिंसादि आश्रव द्वारों से जो निवृत्त हुआ है; वह हि मुनी मोक्षमार्ग में चलनेवाला है... तथा अन्य प्रकार से... विषय एवं कषायों के कारणों से हिंसादि पापों में प्रवृत्त गृहस्थ