Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ 408 // 1-5-3-4 (167) // श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन II संस्कृत-छाया : युद्धाऽहं खलु दुर्लभम्, यथा अत्र कुशलैः परिज्ञा-विवेकः भाषित:, च्युतः खलु बाल: गर्भादिषु रज्यते। अस्मिन् एतत् प्रोच्यते, रूपे वा क्षणे वा, स: खलु एकः संविद्धपथ: मुनिः अन्यथा लोकं उपेक्षमाणः इति कर्म परिज्ञाय सर्वतः सः न हिनस्ति, संयमयति न प्रगल्भते, उपेक्षमाणः प्रत्येकं सातं वर्णादेशी न आरभते कञ्चन सर्वलोके एक प्रमुख: विदिक्प्रतीर्णः निर्विण्णचारी अरतः प्रजासु // 167 // III सूत्रार्थ : युद्ध योग्य औदारिक शरीर का मिलना दुर्लभ है, यह बात तीर्थंकरों ने परिज्ञा विवेक से देशना में कही है, धर्म विरहित व्यक्ति बाल भावको प्राप्त होकर गर्भ में रमण करता है, इस प्रकार आहेत मत है क्योंकि- जो जीव, रूपादि विषयों वा हिंसादि कार्यों में मूर्च्छित है, वही प्राणी गर्भादि में रमण करता है, किंतु जितेन्द्रिय मुनि एकमात्र मोक्ष मार्ग में ही गति कर रहा है, तत्त्व दृष्टि से लोक की विचारणा करता हुआ कर्म के स्वरूप को जानकर सर्व प्रकार से हिंसादि क्रियायें नहीं करता, किन्तु अपने आत्मा को संयम में रखता है.... प्रत्येक प्राणी सात-सुख का इच्छुक है, इस प्रकार की विचारणा से किसी भी जीव की हिंसा नहीं करता, एवं यश की इच्छा न करनेवाला वह साधु किंचित् मात्र भी पापकर्म का आरम्भ नहीं करता, वह सर्वलोक में सभी जीवों को समभाव से देखता है, जिसने एक मोक्ष की और दृष्टि (मुख) की हुई है; वह विदिक् प्रतीर्ण है (दिशा याने मोक्ष और विदिशा याने संसार) अर्थात् वह संसार से उत्तीर्ण हो गया है; इस लिए मुनि हिंसादि क्रियाओं से अथवा स्त्रियों के संसर्ग से निवृत्त होकर शान्तभाव से मोक्षपथ में विचरता है। IV टीका-अनुवाद : ___ यह मनुष्य का औदारिक शरीर भावयुद्ध के लिये निश्चित हि समर्थ है; किंतु वह अतिशय दुर्लभ है.. कहा भी है कि- यह मनुष्य का देह (शरीर) अगाध संसार समुद्र में प्राप्त होने के बाद यदि व्यर्थ हि चुक गये तब पुनः पाना अतिशय दुर्लभ है, तथा विद्यमान यह मनुष्य देह खजुए के तेज और बिजली के चमकार के समान क्षणिक याने विनश्वर भी है... अथवा पाठांतर इस प्रकार है कि- संग्राम (रण) युद्ध अनार्य है, और परीषह आदि कर्मशत्रुओं के साथ जो युद्ध होता है वह आर्य-युद्ध है... और यह आर्य युद्ध दुर्लभ है, अतः इस शरीर से आर्य भावयुद्ध करें... कि- जिससे अपने आप को सर्व कर्मो के क्षय स्वरूप मोक्ष तत्काल हि प्राप्त हो... अतः भावयुद्ध के योग्य औदारिक शरीर को प्राप्त करके कोइक मनुष्य इसी भव (जन्म) में हि सभी कर्मो का क्षय (विनाश) करता है, जैसेंकि- मरुदेवी