Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
View full book text
________________ - 392 // 1 - 5 - 2 - 4 (162) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन दोषों से निवृत्त व्यक्ति का वर्णन करके अब सूत्रकार अविरत एवं परिग्रही व्यक्ति के विषय में कहते हैं... I सूत्र // 4 // // 162 // 1-5-2-4 आवंती केयावंती लोगंसि परिग्गहावंती, से अप्पं वा बहुं वा अणुं वा थूलं वा . चित्तमंतं वा अचित्तमंतं वा एएसु चेव परिग्गहावंती, एतदेव एगेसिं महब्भयं भवइ, लोगचित्तं च णं उवेहाए, एए संगे अवियाणओ // 162 // II संस्कृत-छाया : ___ यावन्तः केचन लोके परिग्रहवन्तः, तद् अल्पं वा बहु वा अणु वा स्थूलं वा चित्तवद् वा अचित्तवद् वा, एतेषु एव परिग्रहवन्तः एतदेव एकेषां महाभयं भवति, लोकचित्तं च उत्प्रेक्ष्य एतान् सङ्गान् अविजानतः // 162 // III सूत्रार्थ : लोक में कितनेक परिग्रह वाले होते हैं, वह परिग्रह अल्प बहुत स्थूल, अणु, सचित्त और अचित्त (सचेतन या चेतना रहित) 'रूप से अनेक प्रकार का हैं, त्यागी-मुनि-विरत भी यदि मू युक्त हों तो वे भी परिग्रह वाले ही होते हैं, इसी परिग्रह में कितनेक जीवों को महाभय होता है, अतः लोकचित्त का विचार करके परिग्रह का परित्याग करे, इस परिग्रह के संग का त्याग करता हुआ मुमुक्षु-साधु भययुक्त नहीं होता। IV टीका-अनुवाद : इस विश्व में जितने भी प्राणी परिग्रहवाले हैं... वह परिग्रह अल्प याने कपर्दक (कोडी) आदि की तरह थोडा हो... बहु याने धन-धान्य-सुवर्ण, गांव एवं जनपद (देश) आदि... अणु याने मूल्य से अणु, तृण-काष्ठ आदि एवं प्रमाण से अणु वज्र आदि... स्थूल याने मूल्य से एवं प्रमाण से अश्व-हाथी आदि... सचित्त याने चित्तवद् अर्थात् सजीव पृथ्वीकाय आदि... अचित्त याने अचित्तवद् अर्थात् अजीव पुद्गल स्कंध आदि... इत्यादि प्रकार के परिग्रहवाले गृहस्थों के बीच व्रतवाले साधु भी छह जीवनिकाय में अथवा रूप आदि विषयवाले अल्प आदि प्रकार के पदार्थों में मूर्छा करने पर परिग्रहवाले होते हैं तथा अविरत याने अविरति का उपदेश देनेवाले विरतिवाले साधु भी अल्पादि परिग्रह से परिग्रहवाले होते हैं / इसी प्रकार बाकी के शेष मृषावादविरमण व्रत आदि में भी स्वयं समझ लें... क्योंकि-एक व्रत के अपराध में सभी व्रतों के अपराध की संभावना होती है... क्योंकि- आश्रव द्वार अनिवारणीय बलवान् होतें हैं...