Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ 340 1 - 4 - 3 - 1 (147) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन बंध एवं सत्ता स्वरूप कर्म तथा उन कर्म के बंध के कारण मिथ्यात्व आदि को जानकर प्रत्याख्यान कहतें हैं... कर्मो के उदय निम्न प्रकार हैं... जैसे कि- मूल कर्मप्रकृतिओं के उदय स्थान तीन (3) हैं... 1. अष्टविध, 2. सप्तविध एवं 3. चतुर्विध... उनमें जो प्राणी आठों कर्मों को एक साथ भुगततें हैं वह अष्टविध... यह अष्टविध कर्म का उदय अभव्य जीवों को काल की दृष्टि से अनादि-अनंत है तथा भव्यजीवों को अनादि-सांत एवं सादि-सांत... तथा मोहनीय कर्म के क्षय या उपशम होने पर सप्तविध उदय होता है तथा चार घातिकर्मो के क्षय होने पर चतुर्विध कर्मो का उदय होता है... अब उत्तर प्रकृतियों के उदय स्थान कहते हैं... जैसे कि- ज्ञानावरणीय एवं अंतराय कर्म के पांच पांच प्रकृतियों का एक हि उदय स्थान होता है... तथा दर्शनावरणीय कर्म के दो उदयस्थान हैं... 1. यक्षुः आदि चार दर्शनावरणीय के उदयवाला, तथा 2. चार दर्शन के साथ एक निद्रा... याने पांच प्रकृतियों का दुसरा उदयस्थान है... तथा वेदनीय कर्म का सामान्य से एक हि उदयस्थान है; साता या असाता वेदनीय स्वरूप... क्योंकि- साता एवं असाता परस्पर विरोधी हैं; अत: दोनो का एक साथ उदय होना असंभव है... ____ तथा मोहनीय कर्म का सामान्य से नव (9) उदयस्थान है... वे इस प्रकार... दश, नव, आठ, सात, छह, पांच, चार, दो, एवं एक... उनमें 1. मिथ्यात्व, 2. अनंतानुबंधी, 3. अप्रत्याख्यानीय, 4. प्रत्याख्यानीय, 5. संज्वलन स्वरूप क्रोध... इसी प्रकार मान, माया एवं लोभ में भी जानीयेगा... 6. तीन वेद में से कोई भी एक वेद... .7. हास्य, 8. रति या शोक-अरति तथा 9. भय एवं 10. जुगुप्सा... तथा भय और जुगुप्सा में से जब कोइ भी एक का अभाव हो तब नव कर्म का उदयस्थान होता है... और भय तथा जुगुप्सा दोनों के अभाव में आठ कर्म का उदयस्थान होता है... तथा अनंतानुबंधी के अभाव में सातकर्म, मिथ्यात्व के अभाव में छह (6) कर्म, अप्रत्याख्यानीय के अभाव में पांच कर्म, प्रत्याख्यानीय के अभाव में चार कर्म, तथा परिवर्तमान युगल के अभाव में संज्वलन क्रोध एवं कोइ भी एक वेद स्वरूप दो कर्म का उदयस्थान... तथा वेद के अभाव में मात्र एक संज्वलन क्रोध का एक कर्म स्वरूप उदयस्थान... तथा आयुष्य कर्म के चार प्रकृतियों में से कोई भी एक आयुष्य के उदय स्वरूप एक हि उदयस्थान है... तथा नाम-कर्म के बारह (12) उदयस्थान हैं... वे इस प्रकार- बीस, एकवीस,