Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 1 - 4 - 1 - 2 (140) 309 - मुक्त हों यां न हों; धन-वैभव एवं परिवार में अनासक्त हों या न हों; अथवा हम संक्षेप में यह कह सकते हैं कि- पापी एवं धर्मी सभी व्यक्तियों को यह अहिंसा का उपदेश देना चाहिए। अहिंसा का मार्ग सभीके लिए समान रूप से खुला है। मोक्ष साधना के क्षेत्र में धर्मी-अधर्मी का कोई भेद नहीं है। जीवन की श्रेष्ठता एवं निकृष्टता बीते हुए जीवन से नहीं नापी जाती। किंतु वर्तमान एवं भविष्य के जीवन से नापी जाती है; अत: जब साधक जागृत होता हैं; संयम एवं अहिंसा के पथ पर बढ़ता है; तभी से उसके जीवन का विकास आरम्भ हो जाता है और वह विश्व के लिए वन्दनीय एवं पूजनीय बन जाता है; अतः सभी प्राणियों को अहिंसा धर्म का समान भाव से उपदेश देना चाहिए। ___प्रस्तुत सूत्र में यह बताया गया है कि- तीनों काल में होने वाले सभी तीर्थंकर इसी अहिंसा धर्म का उपदेश देते हैं। इसका तात्पर्य यह है कि- धर्म आनादि-अनन्त है। महाविदेह क्षेत्र में हर समय तीर्थंकरों का शासन रहता है। अत: कर्मभूमि में धर्म की सरिता सदा बहती रहती है और धर्म का आधार अहिंसा है। क्योंकि- अन्य व्रत; नियम एवं मोक्ष साधना इसी अहिंसा आधार पर पल्लवित, पुष्पित एवं फलित होती है अतः अहिंसा से प्रत्येक प्राणी को शांति मिलती है। साधक के मन में भी शांति का सागर लहराता रहता है। मन में संकल्पविकल्प एवं कलुषित को पनपने का अवसर ही नहीं मिलता। इस कारण अहिंसा को धर्म का प्राण कहा गया है और धर्म अनादि काल से चला आ रहा है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि- प्रत्येक काल में होने वाले तीर्थंकर सर्व क्षेमकरी अहिंसा का उपदेश देते हैं। अत: साधक को अहिंसा धर्म पर श्रद्धा रखनी चाहिए। श्रद्धा के बाद वह क्या करे ? यह बात सूत्रकार महर्षि आगे के सूत्र से कहते हैं... I सूत्र // 2 // // 140 // 1-4-1-2 तं आइत्तु न निहे न निक्खिवे, जाणित्तु धम्मं जहा तहा, दिटेहिं निव्वेयं गच्छिज्जा, नो लोगस्स एसणं चरे // 140 // II संस्कृत-छाया : तत् आदाय न गोपयेत् न निक्षिपेत्, ज्ञात्वा धर्मं यथा तथा, दृष्टैः निर्वेदं गच्छेत् / न लोकस्य एषणां चरेत् // 140 // III सूत्रार्थ : . उस सम्यग्दर्शन को ग्रहण करके न तो त्याग करें और न तो फेंक दें... किंतु जैसा