Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका म 1- 3 --0 205 अथवा सभी कर्मों के दाह = विनाश के बिना जिसकी प्राप्ति न हो वह केवलज्ञानादि गुण भाव उष्ण गुण है... शेष याने बाकी के भी सभी गुण इसी विवक्षा से दो दो प्रकार के जानीयेगा... जीव के इस शीत एवं उष्ण भाव गुणों का विवेक स्वयं नियुक्तिकार हि प्रगट करतें हैं... नि. 202 जीव के परिणाम स्वरूप भावशीत यहां ग्रहण करें... जीव का वह परिणाम इस प्रकार है कि- मोक्षमार्ग से पतन न हो इस प्रकार से कर्मो की निर्जरा के लिये परिषहों को समभाव से सहन करना चाहिये... तथा प्रमाद याने संयमानुष्ठान में शीथिलता अथवा प्रमादाचरण... और उपशम याने मोहनीयकर्म का उपशम... और वह सम्यक्त्व तथा सर्वविरति स्वरूप है... उपशम श्रेणी में यह उपशम भाव होता है... तथा मोहनीय कर्म के क्षय से क्षायिक भाव होता है... तथा विरति याने प्राणातिपात आदि पापों की विरति स्वरूप विरति से युक्त सत्तरह (17) प्रकार का संयम... तथा सुख याने सातावेदनीय कर्मो के उदय से होनेवाला साता-सुख... ____परिषह का स्वरूप पहले कह चूकें हैं... तथा तपश्चर्या में यथाशक्ति उद्यम... तपश्चर्या के बारह भेद हैं... तथा क्रोध आदि कषाय... शोक याने इष्ट की प्राप्ति न होना अथवा तो इष्ट के विनाश से होनेवाली आधि याने मानसिक चिंता = आर्तध्यान... तथा स्त्रीवेद-पुरुषवेद एवं नपुंसकवेद स्वरूप तीन वेद... तथा अरति याने अरति मोहनीय कर्म के विपाकोदय से होनेवाली चित्त की अस्वस्थता तथा दुःख याने असाता-वेदनीय कर्म का विपाकोदय इत्यादि... * यह परिषह आदि कष्ट, पीडा-दायक होने से उष्ण है... यह गाथा का संक्षेप-अर्थ है... विस्तार से तो स्वयं नियुक्तिकार हि कहेंगे... क्योंकि- मंद-मतिवालों को बे समझ या संशय या विपरीत समझ होना संभव है अतः इन दोषों को दूर करने के लिये स्वयं नियुक्तिकार कहतें हैं कि नि. 203 स्त्री-परीषह, सत्कार परीषह, यह दोनो शीत हैं... क्योंकि- यह दोनों भाव-मन को अनुकूल हैं... और बाकी के शेष बीस (20) परीषह उष्ण है... क्योंकि- यह सभी भावमन को प्रतिकूल हैं... अथवा तो अन्य प्रकार से परीषहों का शीत एवं उष्णत्व कहतें हैं... नि. 204 . जो परीषह तीव्र परिणामवाले हैं वे उष्ण हैं, और जो परीषह मंद परिणामवाले हैं वे शीत हैं... तीव्र याने दुःसह और परिणाम याने परिणति जिसकी हो वे परीषह उष्ण हैं और