Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
View full book text
________________ 2301 - 3 -1 - 5 (113) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन कर्मो का सत्तास्थान होता है... (6) इन 86 कर्मो में से नरकद्विक (नरकगति-आनुपूर्वी) 2, एवं वैक्रिय चतुष्टय (4) का उद्वलन हो तब 80 कर्मो की सत्ता का छट्ठा सत्तास्थान होता है... (7) तथा इन 80 कर्मों में से मनुष्यगति एवं मनुष्यानुपूर्वी का उद्वलन हो तब 78 कर्मो का सातवा सत्तास्थान होता है... यह सात सत्तास्थान क्षपकश्रेणी के अभाववाले आत्मा को होतें हैं... अब क्षपकश्रेणी में रहे हुए आत्मा के सत्तास्थान कहते हैं... वे इस प्रकार(१) पूर्वोक्त 93 कर्मो में से- नरकगति नरकानुपूर्वी तिर्यंचगति तिर्यंच-आनुपूर्वी - 2 . .. एकेंद्रिय-बेइंद्रिय, तेइंद्रिय, चउरिंद्रिय जाति... आतप और उद्योत... - 2 . = 10 .. 11 स्थावर, 12 सूक्ष्म, 13 साधारण... यह नरकगति एवं तिर्यंचगति प्रायोग्य तेरह (13) कर्मो का सत्ता में से क्षय होने से 80 कर्मो का पहला सत्तास्थान... (2) पूर्वोक्त 92 कर्मो में से यही तेरह (13) कर्मो की सत्ता का क्षय हो तब 79 कर्मो का दुसरा सत्तास्थान होता है... तथा 93 कर्मों में से आहारक चतुष्टय के अभाव में जो 89 कर्मो का सत्तास्थान हमने कहा था, उसमें से यही तेरह (13) कर्मो की सत्ता का क्षय हो तब 76 कर्मो का तीसरा सत्तास्थान होता है... तथा तीर्थंकर नामकर्म के अभाववाला जो 88 कर्मो का सत्तास्थान कहा था, उसमें से भी यही तेरह (13) कर्मो की सत्ताका क्षय हो तब 75 कर्मो का चौथा सत्तास्थान होता है... पूर्वोक्त 80 या 76 कर्मो की सत्तावाले तीर्थंकर केवली भगवान् चौदहवे अयोगी केवली गुणस्थानक के द्विचरम समय के अंतिम भाग में नव कर्मो को छोडकर शेष 71 या 67 कर्मो की सत्ता का क्षय करते हैं तब तीर्थंकर केवली भगवान् को शैलेशी याने चौदहवे गुणस्थानक के अंतिम समय में नव (9) कर्मो की सत्ता होती है... वे इस प्रकार१. मनुष्यगति, 2. पंचेंद्रिय जाति, 3. त्रस, 4. बादर, 5. पर्याप्तक, 6. सुभग, 7. आदेय, 8. यश:कीर्ति तथा 9. तीर्थंकरनाम कर्म... (6) इन नव (9) कर्मो में से यदि वह पुन्यात्मा तीर्थंकर नहि है, किंतु सामान्य केवली