Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ 278 1 - 3 - 3 - 9 (133) // श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन इसलिए प्रस्तुत सूत्र में साधक को आदेश देते हुए कहा गया है कि- हे पुरुष तू साधु जीवन की संयम-साधना को देख। और अपने आचरण को उसके अनुरूप ढालने का प्रयत्न कर। क्योंकि- संयम निष्ठ मुनि तप-संयम की साधना से मोक्ष पथ पर बढ़ता हुआ लोक संसार के समस्त प्रपंचो से मुक्त हो जाता है। निष्कर्ष यह रहा है कि- साधु को ज्ञान के साथ धैर्यशील एवं सहिष्णु होना चाहिए। कष्ट एवं वेदना के समय भी उसे साहस, शांति एवं आत्म-चिन्तन का त्याग नहीं करना चाहिए। और आर्तध्यान स्वरुप संकल्प-विकल्प में नहीं उलझना चाहिए। रोग उपशांति के लिए औषधि की आवश्यकता पड़ने पर निर्दोष एवं सात्त्विक औषध का सेवन करते हुए भी धैर्य एवं आत्म चिन्तन में संलग्न रहना चाहिए। क्योंकि- जब योगों की प्रवृत्ति सूत्रार्थ के चिन्तन में लगी रहेगी तब बाह्य वेदना की अनुभूति स्वतः नहिवत् हो जाएगी। इससे आत्मा में शांति की अनुभूति होगी और पहिले के बन्धे हुए कर्मों की निर्जरा भी होगी। इसलिए साधक को कर्म बन्धन से मुक्त होने के लिए हर स्थिति-परिस्थिति में आत्माभिमुख होकर चलना चाहिए। 'त्तिबेमि' का अर्थ पूर्ववत् समझें। // इति तृतीयाध्ययने तृतीयः उद्देशकः समाप्तः // +++ .. : प्रशस्ति : मालव (मध्य प्रदेश) प्रांतके सिद्धाचल तीर्थ तुल्य शजयावतार श्री मोहनखेडा तीर्थमंडन श्री ऋषभदेव जिनेश्वर के सांनिध्यमें एवं श्रीमद् विजय राजेन्द्रसूरिजी, श्रीमद् यतीन्द्रसूरिजी, एवं श्री विद्याचंद्रसूरिजी के समाधि मंदिर की शीतल छत्र छायामें शासननायक चौबीसवे तीर्थंकर परमात्मा श्री वर्धमान स्वामीजी की पाट-परंपरामें सौधर्म बृहत् तपागच्छ संस्थापक अभिधान राजेन्द्र कोष निर्माता भट्टारकाचार्य श्रीमद् विजय राजेन्द्र सूरीश्वरजी म. के शिष्यरत्न विद्वद्वरेण्य व्याख्यान वाचस्पति अभिधान राजेन्द्रकोषके संपादक श्रीमद् विजय यतीन्द्रसूरीश्वरजी म. के शिष्यरत्न, दिव्यकृपादृष्टिपात्र, मालवरत्न, आगम मर्मज्ञ, श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम प्रकाशन के लिये राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी हिंदी टीका के लेखक मुनिप्रवर ज्योतिषाचार्य श्री जयप्रभविजयजी म. “श्रमण'' के द्वारा लिखित एवं पंडितवर्य लीलाधरात्मज रमेशचंद्र हरिया के द्वारा संपादित सटीक आचारांग सूत्र के भावानुवाद स्वरूप श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी हिंदी टीका-ग्रंथ के अध्ययनसे विश्वके सभी जीव पंचाचारकी दिव्य सुवासको प्राप्त करके परमपदकी पात्रता को प्राप्त करें... यही मंगल भावना के साथ... "शिवमस्तु सर्वजगतः" वीर निर्वाण सं. 2528. राजेन्द्र सं. 96. विक्रम सं. 2058.