Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 1-3-2-5 (119) 247 6. अब पराघात 10. रस 24. सुभग 11. स्पर्श 25. सुस्वर 12. देव आनुपूर्वी आदेय 13. अगुरुलघु 27. यश:कीर्ति या अयश: कीर्ति 14. उपघात 28. निर्माण नामकर्म // 4 // 5.. यह हि 28 कर्मो में तीर्थंकर नामकर्म जोडनेसे 29 कर्मो का पांचवा बंधस्थान देवप्रायोग्य हि है // 5 // अब त्रीस (30) कर्मो का छट्ठा बंधस्थान कहतें हैं... देवगति 16. उपघात 2. पंचेंद्रियजाति वैक्रिय शरीर उच्छ्वास आहारक शरीर 19. शुभ विहायोगति वैक्रिय अंगोपांग 20. त्रस आहारक अंगोपांग बादर तैजस शरीर 22. पर्याप्तक कार्मण शरीर प्रत्येक समचतुरस्र संस्थान स्थिर वर्ण शुभ 11. गंध सुभग 12. रस 27. सुस्वर 13. स्पर्श 28. आदेय 14. देव आनुपूर्वी 29. यश:कीर्ति 15. अगुरुलघु 30. निर्माणनामकर्म... देवगति प्रायोग्य यह 30 कर्मो का छट्ठा बंधस्थान है... // 6 // तथा तीर्थंकर नामकर्म के साथ पूर्वोक्त 30 याने इकतीस (31) कर्मो का सातवा बंधस्थान है... इन (सात) बंधस्थानों के एकेंद्रिय, बेइंद्रिय, तेइंद्रिय और नरकगति आदि के भेद से बहोत प्रकार होते हैं, वे कर्मग्रंथ से जानीयेगा... 8. तथा अपूर्वकरण आदि तीन गुणस्थानकों में देवगति प्रायोग्य बंध का अभाव होने के बाद मात्र एक हि यश:कीर्ति नामकर्म के बंध स्वरूप एकविध बंध का आठवा 23. 7.