Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका // 1 - 3 - 3 - 4/5 (128-129) 267 कि- मैं कहां से आया हु तथा यहां से पुनः कहां जाना है... इत्यादि यदि प्राणी सोचता है... विचार-चिंतन करता है तब कौन ऐसा प्राणी है, कि- जिसको संसार से निर्वेद न हो ? संसार से विरक्ति न हो? तथा मिथ्याभिमानी कितनेक लोग ऐसा कहते हैं कि- इस मनुष्य लोक में अथवा संसार में यह प्राणी भूतकाल में स्त्री, पुरुष, नपुंसक, सौभाग्य, दुर्भाग्य, कुत्ते, शियाल, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र आदि भेदवाली अवस्थाओं को पाया है तथा पुन: भी अन्य जन्मों मे अनुभव की हुइ यह सभी अवस्थाएं भविष्यत्काल में प्राप्त होगी... अथवा तो अपर याने नहि है इससे पर याने श्रेष्ठ वह अपर याने संयम... इस संयम से वासित चित्तवाले प्राणी पूर्वकाल में अनुभव कीये हुए विषय भोगों के उपभोग आदि को याद नहिं करतें... तथा कितनेक राग-द्वेष से मुक्त संयम-साधु भविष्यत्काल में दिव्य-देवीओं के भोगोपभोग की भी कामना नहिं करतें... तथा कितनेक अज्ञ जीव को भूतकाल में कौन से दुःख प्राप्त हुए हैं तथा भविष्यत्काल में भी कौन कौन-दुःखादि प्राप्त होंगे इत्यादि याद नहिं करतें... अथवा तो भूतकाल में कितना काल बीत गया है, तथा भविष्यत्काल में कितना काल आयेगा... इत्यादि भी याद नहि करतें... यहां विषयभोग की आसक्ति हि मुख्य कारण है.. यहां राग-द्वेष रहित केवलज्ञानी अथवा चौदपूर्वी लोकोत्तर पुरुष कहते हैं कि- यह संसार एवं जीव अनादि-अनंत है अत: इस संसार में जीव को भूतकाल में, अनंत शरीर एवं अनंत शोक-दुःखादि प्राप्त हुए हैं, तथा भविष्यत्काल में भी जब तक कर्म है तब तक यह सब प्राप्त होंगे.... __ अन्य आचार्य पुनः ऐसा कहते हैं कि- प्राणी अन्य जन्मों के साथ पूर्व के बीते हुए जन्मों को याद नहिं करतें... कि- किस प्रकार भूतकाल में सुख-दुःखादि प्राप्त हुए तथा किस कारण से पुनः भविष्यत्काल में सुखदुःखादि प्राप्त होंगे... तथा कितनेक लोग पुनः ऐसा कहतें हैं कि- जिस प्रकार राग एवं द्वेष से होनेवाले कर्मो से बंधे हुए प्राणी को उन कर्मो के विपाक याने फल का अनुभव करते हुए इस संसार में जो भूतकाल बीत चुका है, वैसा हि सुखदुःखादि का अनुभव भविष्यत्काल में भी होगा... अथवा प्रमाद, विषय और कषाय आदि से शुभाशुभ कर्मो को बांधकर यह प्राणी इष्ट एवं अनिष्ट विषय-भोगों का अनुभव करता हुआ सोचता है कि- जिस प्रकार यह संसार भूतकाल में बीता है वैसा हि भविष्यत्काल में भी बीतेगा... किंतु जो मुमुक्षु जीव संसार समुद्र के किनारे पे रहे हुए हैं वे हि पूर्वकाल एवं उत्तरकाल को जानते हैं इत्यादि बात सूत्रकार महर्षि