Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी- टीका // 1-3 - 1 - 1 (109) // 211 मूर्च्छित एवं वायु आदि दोषों से उत्पन्न हुए ग्रह दोष से पराधीन ऐसा प्राणी प्रतीकार न हो शके ऐसे अनेक दुःसह दुःखों को प्राप्त करता है... तथा भाव से सोया हुआ याने मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद एवं कषाय आदि की अवस्था में रहा हुआ प्राणीगण नरकगति आदि के दुःखों को प्राप्त करता है... यह यहां गाथार्थ कहा... अब व्यतिरेक-दृष्टांत से उपदेश देते हुए कहते हैं कि - नि. 214 __ पूर्व कहे गये उपदेश का सार यह है कि- जीव विवेक से सुख एवं अविवेक से दुःख प्राप्त होता है... जैसे कि- सचेतन विवेकी मनुष्य घर में आग लगने पर यदि बाहर निकल जाता है तब सुख को पाता है... तथा मार्ग के विषय में भी संकट या सुरक्षितता का विवेक ज्ञान होना जरुरी है... “आदि" शब्द से अन्य भी चौर-धाडपाडु लुटेरे आदि के भय उपस्थित होने पर भी विवेकी मनुष्य सरलता से संकट से बचकर सुखी होता है... इसी प्रकार श्रमणसाधु भी विवेकी होने से भाव से सदा जागरण अवस्था में रहता हुआ सभी कल्याण-सुखों का पात्र-मंदिर होता है... यहां अब सुप्त एवं असुप्त के अधिकार की गाथाएं इस प्रकार है... हे मनुष्यों ! तुम सदा जाग्रत रहो... जो जागरण करता है उसकी बुद्धि एवं ज्ञान बढता है... अतः कहतें हैं कि- जो सोता है वह धन्य नहि है, किंतु जो सदा जाग्रत है वह हि धन्य है... तथा... सोये हुए प्रमत्त मनुष्य का श्रुतज्ञान संशयवाला एवं स्खलनावाला होता है, जब कि- जागरण करनेवाले अप्रमत्त मनुष्य का श्रुतज्ञान निःसंदेह एवं स्थिर परिचयवाला होता है... जहां आलस है वहां सुख नहिं है... जहां निद्रा है वहां विद्या नहिं है... जहां प्रमाद है वहां वैराग्य नहिं है... और जहां आरंभ है वहां दया नहिं है... धर्मी लोगों का जागरण कल्याण कारक है... अधर्मी लोगों का सोया रहना कल्याणकर है यह बात जिनेश्वर श्री महावीर प्रभुने वत्सदेश के राजा की बहन जयंती श्राविका के प्रश्नोत्तर में कही थी... जो मनुष्य अजगर की तरह सोया रहता है, उसका अमृत के समान श्रुतज्ञान विनष्ट होता है, और जो मनुष्य बैल (गाय) की तरह जागरण करता है, उसका विनष्ट हुआ श्रुतज्ञान भी अमृत समान उजागर होता है... इस प्रकार दर्शनावरणीय कर्म के विपाकोदय से संविग्न और यतनावाला साधु रामि