Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 1 - 3 - 1 - 5 (113) 225 IV टीका-अनुवाद : * भाव से जागरण करनेवाला साधु भावस्वाप से उत्पन्न होनेवाले शारीरिक एवं मानसिक दुःखों से आतुर याने कर्त्तव्यमूढ (विवेकशून्य) और दुःख समुद्र में डूबे हुए द्रव्य प्राण धारण करनेवाले प्राणीओं को देखकर अप्रमत्त होकर संयमानुष्ठान करे... ___ हे मतिमान् साधु ! भावसुप्त ऐसे आतुर प्राणीओं को देखो ! और जागरण के गुण तथा सोये रहने के दोषों को जानकर सोये रहने की बुद्धी-इच्छा न करें... तथा आरंभ याने सावद्य (पापवाले) क्रियानुष्ठान से उत्पन्न होनेवाले दुःख और दुःखों के कारण कर्म को जानकर निरारंभ बनकर आत्महित में जागरण कर... वह दु:ख (कर्म) सभी जीवों को प्रत्यक्ष हि है... और आरंभ में प्रवृत्त सभी प्राणीगण को अनुभव में आता है... जो जीव विषय एवं कषाय से युक्त होने से भावसायी है वह क्या प्राप्त करता है ? इस प्रश्न के उत्तर में कहते हैं कि- मायावाला याने क्रोधादि कषायवाला मद्य आदि प्रमादवाला वह प्राणी नारक के दुःखों का अनुभव करके पुनः तिर्यंच गति में गर्भावस्था को प्राप्त करता है... जो प्राणी कषाय रहित है तथा प्रमाद रहित है वह कैसा होता है ? इस प्रश्न के उत्तर में कहते हैं कि- शब्द आदि में होनेवाले राग एवं द्वेष की उपेक्षा करता है, तथा ऋजु याने यतनावाला यति-साधु होता है... साधु परमार्थ से ऋजु याने सरल होता है... और अन्य प्राणी यतनावाले न होने के कारण से स्त्री आदि पदार्थों को विपरीत प्रकार से देखतें हैं अतः वे वक्र हैं... तथा वह ऋजु साधु शब्दादि की उपेक्षा करने के साथ साथ मार याने मरण से सदा अभिशंकी याने उद्विग्न रहता है अत: वह साधु ऐसा धर्मानुष्ठान करता है कि- मरण से सर्वथा मुक्ति हो... वह साधु शब्दादि-कामगुणों के प्रसंग में अप्रमत्त रहता है, और कामभोग के हेतुभूत पापकर्मो से उपरत याने विरमण करता है... अर्थात् मन वचन एवं काया से निवृत्त होता है... ऐसा वह वीर साधु गुप्तात्मा होता है... प्रश्न- गुप्त कौन होता है ? उत्तर- जो खेदज्ञ है वह गुप्त होता है... प्रश्न- जो खेदज्ञ है उसे कौनसा गुण प्राप्त होता है ? उत्तर- जो खेदज्ञ है वह शब्दादि विषयों के पर्यव याने पर्याय में होनेवाले शस्त्रारंभ... अर्थात् शब्दादिगुणो की प्राप्ति के लिये जीवों के उपघात कारक सावधानुष्ठान का खेदज्ञ याने ज्ञाता होता है... और जो पर्यवजातशस्त्र का खेदज्ञ है वह अशस्त्र याने निरवद्य (निर्दोष) अनुष्ठान स्वरूप संयम का खेदज्ञ होता है... तथा जो अशस्त्र याने संयम का खेदज्ञ