Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
View full book text
________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 1 - 3 - 0 - 0 203 अथ आचाराङ्गसूत्रे प्रथमश्रुतस्कन्धे तृतीयमध्ययनम् ___ शीतोष्णीयः // द्वितीय अध्ययन कह चूकें... अब तृतीय अध्ययन का प्रारंभ करतें हैं... और इसका परस्पर यह संबंध है कि- प्रथम शस्त्रपरिज्ञा अध्ययन में अर्थाधिकार के प्रसंग में कहा था किशीत याने अनुकूल और उष्ण याने प्रतिकूल परिषहों को सम भाव से सहन करना चाहिये... वह बात अब यहां तृतीय अध्ययन में कहतें हैं... ____ जैसे कि- शस्त्रपरिज्ञा अध्ययन में कहे गये महाव्रतों से संपन्न एवं लोकविजय नाम के द्वितीय अध्ययन में कहे गये संयमानुष्ठान में रहे हुए एवं कषाय आदि भाव लोक को जीतनेवाले मुमुक्षु साधु को कभी भी अनुकूल और प्रतिकूल परिषह प्राप्त हो, तब मन को विकृत कीये बिना हि समभाव से उन्हे सहन करें... इस संबंध से यह तृतीय अध्ययन यहां आया हुआ है... इस अध्ययन के उपक्रम निक्षेप अनुगम और नय यह चार अनुयोग द्वार होते हैं, उनमें उपक्रम द्वार में अर्थाधिकार के दो प्रकार है... 1. अध्ययन अर्थाधिकार, और 2. उद्देश अर्थाधिकार... उनमें अध्ययन अर्थाधिकार पहले कह चूकें है... अतः अब उद्देशअर्थाधिकार कहने के लिये नियुक्तिकार श्री भद्रबाहुस्वामीजी नियुक्ति-गाथा से कहते हैं... . नि. 198/199 __ प्रथम उद्देशक में- असंयत जीव सोये हुए हैं... दुसरे उद्देशक में- असंयत जीव दुःखों को पाते हैं... तृतीय उद्देशक में- संयमानुष्ठान के बिना मात्र दुःखों को सहन करने से हि श्रमण नहि कहलाते हैं... और चौथे उद्देशक में- कषायों का वमन तथा पापों की विरति से हि ज्ञानी को संयम और मोक्ष होतें हैं... प्रथम उद्देशक में- अर्थाधिकार इस प्रकार कहा है कि- भाव-निद्रा में सोये हुए अर्थात् विवेक रहित ऐसे असंयत याने गृहस्थ लोगों को दोष-पाप होता है, और मोहनिद्रा का त्याग करके जागनेवाले संयत-श्रमणों को आत्म-गुण होता है... __द्वितीय उद्देशक में- यह भावनिद्रावाले असंयत = गृहस्थ लोग जिस प्रकार दुःखों का अनुभव करते हैं वह बात कहेंगे...