Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 1-2-1 - 10(72) // 79 I सूत्र // 10 // // 72 // 1-2-1-10 - जाव सोयपरिण्णाणा अपरिहीणा, नेत्तपरिण्णाणा अपरिहीणा, घाणपरिण्णाणा अपरिहीणा, जीहपरिण्णाणा अपरिहीणा, फरिसपरिण्णाणा अपरिहीणा, इच्चेएहिं विरूवरूवेहिं परिण्णाणेहिं अपरिहीणेहिं आयटुं सम्मं समणुवासिज्जासि त्तिबेमि // 72 // II संस्कृत-छाया : यावत् श्रोत्रपरिज्ञानानि अपरिहीनानि, नेत्रपरिज्ञानानि अपरिहीनानि, घ्राणपरिज्ञानानि अपरिहीनानि, जिह्वापरिज्ञानानि अपरिहीनानि, स्पर्शपरिज्ञानानि अपरिहीनानि इति एतैः विरूपरूपैः परिज्ञानैः अपरिहीनैः आत्मार्थं सम्यक् समनुवासयेत् इति ब्रवीमि // 72 // III सूत्रार्थ : जब तक श्रोत्र का परिज्ञान क्षीण नहि हुआ, नेत्रका परिज्ञान क्षीण नहि हुआ, घ्राण (नासिका) का परिज्ञान क्षीण नहि हुआ, जिह्वा का परिज्ञान क्षीण नहि हुआ, स्पर्श का परिज्ञान क्षीण नहि हुआ... इत्यादि विविध प्रकार के परिज्ञान जब तक क्षीण नहि हुए हैं, तब तक आत्मा के हित के लिये अच्छी तरह से आत्मा के द्वारा आत्मा को धर्मानुष्ठान में स्थापित करें ऐसा मैं (सुधर्मास्वामी) (हे जम्बू ! तुम्हें) कहता हुं... // 72 // IV टीका-अनुवाद : ____ जब तक विनाशशील इस काया के श्रोत्र का ज्ञान वृद्धावस्था से या रोग से क्षीण होतें नहिं है... इसी प्रकार नेत्र, नासिका, जिह्वा, स्पर्श के ज्ञान अपने अपने विषय को ग्रहण करने के कार्य में मंद (अल्प) नहिं हुए हैं... इत्यादि... अर्थात् जब तक सभी इंद्रियों के प्रकृष्ट ज्ञान क्षीण नहि हुए हैं तब तक सम्यग् दर्शन-ज्ञान-चारित्र स्वरूप आत्मा का हित करें... क्योंकि- इन रत्नत्रयी के सिवा सब कुछ अनर्थ हि है अथवा आत्मा के लिये हित कारक चारित्रानुष्ठान हि है... अथवा आयत याने जिसका अंत न हो वह... यह मोक्ष है जिसका प्रयोजन... वह आयतार्थ... याने मोक्ष... अथवा आयत याने मोक्ष और अर्थ याने प्रयोजन है जिस सम्यग्दर्शनादि रत्नत्रय का ऐसे उस चारित्रानुष्ठान में आत्मा को स्थापित करें... सम् = सम्यग् अनु = पश्चात् अर्थात् आयुष्य जब तक वृद्धावस्था या रोगों से आक्रांत याने घेरी हुइ नहि है ऐसा उत्तम क्षण याने अवसर को देखकर अथवा श्रोत्र आदि के ज्ञान क्षीण नहि हुए हैं ऐसा जानकर आत्मा के हित के लिये आत्मा में धर्मानुष्ठान के शुभ अध्यवसाय करें...