Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 1 - 2 - 6 - 10 (107) 199 महर्षि आगे का सूत्र कहतें हैं... I' सूत्र // 10 // // 107 // 1-2-6-10 से जं च आरभे, जं च नारभे, अनारद्धं च न आरभे, छणं छणं परिण्णाय लोगसण्णं च सव्वसो // 107 // II संस्कृत-छाया : सः यत् च आरभते, यत् च न आरभते, अनारब्धं च न आरभते, क्षणं क्षणं परिज्ञाय लोकसज्ञां च सर्वशः // 107 // III सूत्रार्थ :. वह कुशल मुनी संयम को आचरता है, और संसार के कारणों को आचरता नहि है... तथा अनारब्ध = अनाचीर्ण को आचरता नहि है... वह मुनी प्राणीवध को और अवसर को देखकर के तथा सर्व प्रकार से लोकसंज्ञा को जान करके // 10 // IV टीका-अनुवाद : . उस कुशल मुनी ने आरंभ करने योग्य सभी कर्मो के क्षय का उपाय अथवा तो संयमानुष्ठान का जो आरंभ कीया है, और करता है तथा आरंभ नहि करने योग्य संसार के कारण मिथ्यात्व-अविरति आदि का आरंभ नहि कीया है... और नहि करता है... तथा संसार के कारण मिथ्यात्व-अविरति आदि और प्राणातिपातादि अट्ठारह पापस्थानक का एकांत (निश्चत) से ही त्याग करने पर विधेय ऐसे संयमानुष्ठान का सद्भाव सामर्थ्य से हि प्रतीत होता हि है, अतः कहतें हैं कि- केवली और विशिष्ट मुनीओं ने जिस अनाची) का त्याग कीया है, उनका मुमुक्षु-साधु भी त्याग करें... और मोक्ष के उपायों की आचरणा का आचरण करें... परमात्मा ने त्याग योग्य जो बावन अनाचीर्ण कहे हैं उन अनाचीणों का सावधानी से त्याग करें... तथा क्षण याने हिंसा... अर्थात् जिस जिस कारणों से प्राणीवध स्वरूप हिंसा होती है, उन उन कारणों को ज्ञ परिज्ञा से जानकर एवं प्रत्याख्यान परिज्ञा से उनका त्याग करें... यहां कारण में कार्य का उपचार कीया है... तथा क्षण याने अवसर अथवा कर्त्तव्य काल... याने संयमानुष्ठान... उनको ज्ञ परिज्ञा से जानकर प्रत्याख्यान परिज्ञा से आचरण करें... - तथा लोकसंज्ञा = लोक याने गृहस्थलोक तथा संज्ञा याने जो शब्दादि विषया की आसक्ति से होनेवाली कामभोग के उपभोग की इच्छा अथवा परिग्रह संज्ञा... उनको ज्ञ परिज्ञा