Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ 116 1-2 - 3 - 4/5 (81/82) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन होता है... वह अज्ञानी बाल जीव अन्य लोगों के लिये क्रूर कर्म करता हुआ उनके दुःखों से मूढ बना हुआ विपर्यास को पाता है... मुनि = तीर्थंकर प्रभुने यह कहा है... कि- अनोघंतर याने पार्श्वस्था अथवा कुतीर्थिक संसार को तैर नहि शकतें, तथा अतीरंगम ऐसे ये लोग तीर = किनारे पे जाने में समर्थ नहिं है. अपारंगमा यह लोग संसार का पार पाने के लिये समर्थ नहि है, असंयम (कर्मो) का स्वीकार करके मोक्षमार्ग में नहि रहता है, तथा वितथ याने विपरीतता को पाकर संसारी जीव असंयम के हि स्थान में रहता है... // 81-82 / / IV टीका-अनुवाद : वे लोग पूर्वोक्त संपूर्ण विषयोपभोगवाला जीवन, क्षेत्र, वास्तु, स्त्री आदि के परिभोग को नहि चाहतें... कि- जो मनुष्य लोग ध्रुव याने मोक्ष और उसके कारण ज्ञान आदि के आचरण में लीन रहते हैं... अथवा धूत याने चारित्र... चारित्र के आचरण में लीन होते हैं... और वह जन्म तथा मरण को अच्छी तरह से जानकर संक्रमण याने चारित्र में तत्पर होता है... वहां चारित्र में दृढ याने दुर्ध्यान का अभाव, परीषह और उपसर्गों में अचल अथवा तो निःशंक मनवाला होकर संयम का आचरण करो... शंका का अभाव = अशंकाः शंका के अभाववाला जिसका मन हो वह अशंक मनवाला है... अर्थात् तप दम और नियमों के निष्फलता की शंका से रहित और आस्तिक्यगुणवाला होने से तप दम आदि में प्रवृत्त होता रहता है... क्योंकि- जो साधु ऐसा होता है वह हि राजा- चक्रवर्ती आदि की पूजा एवं प्रशंसा के योग्य है... और औपशमिक सुख स्वरूप फल को पानेवाले एवं सभी द्वन्द्वों से दूर ऐसे तपस्वीसाधु प्राज्ञ पुरुष अशुभ कार्यों का त्याग करे... मान लो कि- परलोक नहि है तो भी कोइ नुकशान नहि है, किंतु यदि परलोक रहा तब तो वह नास्तिक बेहाल (विनाश) हो जाएगा... इत्यादि... इसलिये अपने अधीन संयम सुखमें दृढ रहें... किंतु ऐसा कभी नहिं सोचें कि“आगामी वर्ष में या दो वर्ष बाद या वृद्धावस्था में धर्मानुष्ठान करूंगा...” इत्यादि... // 81 // ___ काल याने मृत्यु को आने में अनवसर नहि है... वह इस प्रकार- सोपक्रमी आयुष्यवाले प्राणी को ऐसी कोइ अवस्था नहि है कि- कर्म रूप अग्नि में रहे हुओ जीव रूप जतु याने लाख का गोला विनाश न हो... कहा भी है कि- बालक हो या युवान, कठोर हो या कोमल, मूर्ख हो या विद्वान, धीर हो या डरा हुआ, स्वाभिमान हो या नम्र, निर्गुण हो या गुणवान्, साधु हो या संसारी, उजाले में हो या अंधेरे में, अचेतन (मूर्च्छित) हो या सचेतन, रात्रि हो, दिवस हो या संध्या समय हो, काल याने मृत्यु कोइ भी जीव का कभी भी विनाश करता है...