Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 卐१-२-५-१(८८)॥ 139 कर्मकरेभ्यः कर्मकरीभ्यः आदेशाय, पृथक् पृथक् प्रहेणकार्थं श्यामाऽऽशाय, प्रातराशाय, सन्निधि-सन्निचयः क्रियते, इह एकेषां मानवानां भोजनाय // 88 // III सूत्रार्थ : जो लोग विभिन्न प्रकार के शस्त्रों के द्वारा लोगों के लिये कर्मसमारंभ करते हैं, वे इस प्रकार- उसके अपने पुत्रों के लिये, पुत्रीओं के लिये, पुत्रवधूओं के लिये, ज्ञातिजनों के लिये, धावमाता के लिये, राजाओं के लिये, दास-सेवक के लिये, दासी-सेविका के लिये, कर्मकर-चाकर के लिये, कर्मकरीओं के लिये, पृथक् पृथक् पुत्रादि को भोजन के लिये, साम के भोजन के लिये, प्रातः काल के भोजन के लिये, धन-धान्य का संनिधि-संचय करता है और कितनेक मनुष्यो के भोजनके लिये संचय करतें हैं // 88 // IV टीका-अनुवाद : विद्या के अभाववाले जो लोग विषयसुख की प्राप्ति और दुःखों के परिहार के लिये विविध प्रकार के प्राणीओं का वध करनेवाले द्रव्य-भाव शस्त्रों से लोक याने प्राणी अपने शरीर के लिये पुनः पुत्र, पुत्री, पुत्रवधू और ज्ञातिजन आदि के लिये सुख की प्राप्ति एवं दुःखों को दूर करनेके हेतु से कायिकी, अधिकरणिकी, प्राद्वेषिकी पारितापनिकी और प्राणातिपातिकी स्वरूप असत् क्रियाएं... अथवा कृषि और व्यापार आदि स्वरूप संरंभ समारंभ और आरंभ स्वरूप क्रियाओं को करतें हैं... उनमें संरंभ याने इष्ट की प्राप्ति और अनिष्ट के परिहार के लिये प्राणातिपातादि के संकल्प स्वरूप आवेश... समारंभ याने उन इष्ट-प्राप्ति एवं अनिष्ट-परिहार के लिये साधनसामग्री एकत्रित करना इत्यादि समारंभ तथा आरंभ याने मन वचन एवं कायदंड के व्यापार से होनेवाले प्राणातिपातादि क्रियाओं का आचरण... अर्थात् आठों प्रकार के कर्मो के उपार्जन के उपाय करतें हैं यहां चतुर्थी के अर्थ में षष्ठी विभक्ति का प्रयोग कीया गया है... अब प्रश्न यह होता है कि- वे कौन लोग हैं ? कि- जिसके लिये मनुष्य संरंभ, समारंभ और आरंभ करतें हैं ? उत्तर- अपने पुत्र-परिवार के लिये लोग आरंभादि करतें हैं... यहां भी तृतीया के अर्थ में षष्ठी विभक्ति है... अर्थात् जहां मनुष्य अपने परिवार के लोगों के लिये विविध प्रकार के शस्त्रों से कर्म-समारंभ करतें हैं, वहां इस लोक में साधु साधुवृत्ति का अन्वेषण (शोध) करें... मनुष्य अपने पुत्र, पुत्री, पुत्रवधूओं के लिये कर्म-समारंभ करता है... तथा ज्ञाति याने पूर्व और प्रश्चात् संबंधवाले स्वजन लोगों के लिये, इसी प्रकार धात्री, राजा, दास, दासी, कर्मकर, कर्मकरीओं के लिये मनुष्य कर्मसमारंभ करता है... तथा अतिथि-प्राघूर्णक - महेमान