Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ 160 1 -2-5-8(95) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन जे बद्धे पडिमोयए, जहा अंतो तहा बाहिं, जहा बाहिं तहा अंतो, अंतो अंतो पूड़ देहंतराणि पासइ, पुढो वि सवंताई पंडिए पडिलेहाए // 95 // II संस्कृत-छाया : आयंतचक्षुः लोकविदर्शी, लोकस्य अधो भागं जानाति, ऊर्ध्व भागं जानाति, तिर्यक् भागं जानाति, गृद्धः लोकः अनुपरिवर्त्तमानः, सन्धिं विदित्वा इह मत्र्येषु, एषः वीरः प्रशंसितः, य: बद्धान्, प्रतिमोचयति, यथा अन्तः तथा बहिः, यथा बहिः तथा अन्तः, अन्तः अन्तः पूति देहान्तराणि पश्यति, पृथक् अपि स्रवन्ति पण्डितः प्रत्युपेक्षेत // 95 // III सूत्रार्थ : आयतचक्षु और लोकविदर्शी साधु लोक के अधोभाग को जानते हैं, ऊर्ध्व भाग को जानतें हैं, तिर्यक् भाग को जानते हैं इत्यादि, जैसे कि- गृद्ध = आसक्त लोक संसारचक्र में अनुपरिवर्त्तमान है... यहां मनुष्य जन्म में जो व्यक्ति ज्ञान-संधि को जानकर विषयों का त्याग करता है वह वीर है, प्रशंसनीय है, और वह हि बद्ध प्राणीओ को मुक्त करता है... जैसा अंदर वैसा बाहर, और जैसा बाहर वैसा अंदर... देह के अंदर अंदर पूति - दूर्गंध मांसमेद को देखता है, देह में नव या बारह द्वार दुर्गंध को बहाते हैं, यह सब कुछ विद्वान् साधु शास्त्रदृष्टि से देखे... // 95 // IV टीका-अनुवाद : आयत याने दीर्घ काल संबंधित अर्थात् इस जन्म एवं जन्मांतर के अपार-संकट को देखने के लिये ज्ञान-चक्षु जिसके पास है, वह आयतचक्षु = साधु... एकान्त से अनेक अनर्थोंवाले कामभोगों का त्याग करके शमसुख का अनुभव करता है, तथा लोक याने विषयभोगों की आसक्ति से प्राप्त अतिशय दुःखोंवाले एवं कामभोग के त्याग से प्राप्त शमसुखवाले इत्यादि विविध प्रकार के लोगों को शास्त्रदृष्टि से देखनेवाले साधुजन होते हैं, अथवा लोक के ऊर्ध्व, अधो एवं तिर्यग् भाग की गति के कारणभूत आयुष्य और प्राप्तव्य साता एवं दुःखों के प्रकारों को देखता है... वह इस प्रकार- लोक याने धर्मास्तिकाय, और अधर्मास्तिकाय से व्याप्त आकाश खंड (लोकाकाश) के अधोभाग को साधु शास्त्रदृष्टि से जानता है... सारांश यह है कि- जिस कर्मो के उदय से प्राणी वहां नरक में उत्पन्न होते हैं, और वहां जिस प्रकार के साता एवं दुःखों का विपाक हैं, उन्हें साधु अच्छी तरह से जानता है... इसी प्रकार ऊर्ध्व एवं तिर्यग्भाग में भी समझीयेगा... अथवा तो लोकविदर्शी याने कामभोग के लिये धन उपार्जन करने में आसक्त और मूर्छावाले लोगों को देखते हैं, वह