Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
View full book text
________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 1 - 2 - 2 - 3 (75) 91 कामभोग के सुखों का भी त्याग करता है... क्योंकि- जो साधु अपने शरीर आदि में भी लोभममता रहित है, वह सर्वविरत साधु ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती से आमंत्रित चित्र मुनि की तरह कामभोग के उपभोगों में आसक्त नहिं होता... यहां प्रधान याने मुख्य और अंतिम ऐसे संज्वलन लोभ का त्याग कहने से सामान्य ऐसे अनंतानुबंधि आदि पूर्व के क्रोधादि का त्याग तो हो ही गया है, ऐसा स्वयं समझ लें... तथा क्षमा से क्रोध, मार्दवता से मान, सरलता से माया का एवं संतोष से लोभ का त्याग स्वयं समझ लें... और यहां सूत्र में जो लोभ का ग्रहण कीया है वह सर्व क्रोधादि कषायों मे लोभ की प्रधानता बताने के लिये हि है... वह इस प्रकार- लोभ में प्रवृत्त प्राणी, साध्य और असाध्य के विवेक से विकल होता हैं, तथा कार्य और अकार्य के विचार से रहित है तथा मात्र एक धन.की हि दृष्टिवाला ऐसा वह लोभी साधु पापों के कारणो में रहकर सभी पापाचरण स्वरूप सावध क्रियाओं को करता रहता है... कहा भी है कि- जो पुरुष धन में आसक्त है वह रोहणाचल की और दौडता है, समुद्र को तैरता है, पर्वतो के निकुंजो में घूमता है, बंधुजन को भी मारता है... तथा धन प्राप्ति के लिये चारों और बहोत भटकता है, भार को उठाता है, भूखा रहता है, और धिट्ठा-पापी वह पुरुष अनेक पापाचरण करता है तथा लोभ से आकुल प्राणी कुल, शील और जाति संबंधित धृति का भी त्याग करता है... इत्यादि... कितनेक मनुष्य कारण विशेष की परिस्थिति में लोभ आदि के साथ हि प्रवजित होकर बाद में लोभ आदि का परित्याग करते हैं... और कोइ प्राणी पहले हि लोभ का त्याग करके प्रव्रज्या ग्रहण करता है यह बात अब सूत्रकार महर्षि आगे के सूत्र से कहेंगे... सूत्रसार : जैन संस्कृति में त्याग को महत्त्व दिया गया है, न कि- वेष-भूषा को। यह ठीक है कि- द्रव्य-वेष का भी महत्त्व है, परन्तु त्याग-वैराग्य युक्त भावना के साथ ही उस द्रव्य वेश का मूल्य है। भाव शून्य वेषचारी साधक साधु को पथ भ्रष्ट कहा गया है। जो साधक त्यागवैराग्य की भावना को त्याग कर रात-दिन खाने-पीने, सोने एवं विलास में व्यस्त रहता है, असे पापी श्रमण कहा गया है। प्रस्तुत सूत्र में त्यागी की परिभाषा बहुत ही सुन्दर की गई है। वह व्यक्ति त्यागी नहीं माना गया है, कि- जिसके पास वस्तु का अभाव है, क्योंकि- उसका मन अभी भी उन भौतिक वस्तुओं में भटक रहा है। जिस साधु ने वस्त्र, सुगंधित पदार्थ, अलंकार, स्त्री, शय्या-घर आदि भोगोपभोग के पदार्थों का त्याग कीया हैं, परंतु उन पदार्थों की वासना उसके मन में रही हुई है; तो वह साधु भगवान महावीर की भाषा में त्यागी नहीं है। किंतु त्यागी वह है, कि