Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ 261 - 2 -0-0% श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन यह वर्गणा वैक्रिय को भी ग्रहण योग्य नहि होती है... यहां जैसे जैसे प्रदेशों का उपचय (अधिकता) होता है वैसे वैसे विस्रसा परिणाम के कारण से वर्गणाओं की सूक्ष्मतरता होती है... अर्थात् उत्तरोत्तर वर्गणाएं अतिसूक्ष्म होती हैं... अब इन अग्रहण योग्य उत्कृष्ट वर्गणा में एक परमाणु का प्रक्षेप होने से वैक्रिय शरीर के लिये ग्रहण योग्य वर्गणा होती है... अब यहां भी औदारिक योग्य जघन्य वर्गणा से जिस प्रकार उत्कृष्ट वर्गणा होती है उसी हि प्रकार वैक्रिय योग्य जघन्य वर्गणा में एक एक प्रदेशपरमाणु की वृद्धि तब तक करें कि- जब वैक्रिय योग्य उत्कृष्ट वर्गणा बनें... यहां भी वैक्रिय योग्य जघन्य एवं उत्कृष्ट के बिच में मध्यम वर्गणा अनंत है... तथा वैक्रिय योग्य और आहारक शरीर योग्य वर्गणा के बिच में अग्रहण योग्य जघन्य वर्गणा से उत्कृष्ट असंख्येय गुण अधिक है और वे अग्रहण योग्य वर्गणा भी अनंत हि है... अब वैक्रिय एवं आहारक के अयोग्य उत्कृष्ट वर्गणा में एक परमाणु का प्रक्षेप हो तब वह आहारक शरीर योग्य जघन्य वर्गणा बनती है, और वे एक एक प्रदेश की वृद्धि से बढ़ते हुए उत्कृष्ट पर्यंत अनंत वर्गणा होती है... अब यहां जघन्य से उत्कृष्ट विशेषाधिक है... विशेषाधिक याने जघन्य वर्गणा का अनंतवा भाग... तो भी आहारक शरीर योग्य एक एक प्रदेश की वृद्धिवाली वे वर्गणा अनंत है... अब आहारक योग्य उत्कृष्ट वर्गणा में एक परमाणु का प्रक्षेप (अधिक) हो तब वह आहारक शरीर को अग्रहण योग्य जघन्य वर्गणा होती है... उसके बाद एक एक प्रदेश-परमाणु की वृद्धि से बढती हुई उत्कृष्ट पर्यंत अनंत वर्गणा आहारक शरीर को अग्रहण योग्य हैं... क्योंकि- अब वे बहोत प्रदेशवाली होने से सूक्ष्म परिणामवाली वर्गणा है अतः आहारक शरीर के लिये भी अयोग्य है... अब एक एक प्रदेश की वृद्धि से बढती हुई उत्कृष्ट पर्यंत अनंत वर्गणा आहारक के लिये अयोग्य है क्योंकि- बहोत प्रदेशवाली और सूक्ष्म है, जब कि- तैजस शरीर के लिये भी अयोग्य है क्योंकि- तैजस योग्य वर्गणा की अपेक्षा से अल्प प्रदेशवाली और बादर है... अब इस अग्रहण योग्य जघन्य वर्गणा से उत्कृष्ट वर्गणा अनंतगुण है और वह अनंत अभव्य से अनंतगुण और सिद्ध के अनंतवे भाग प्रमाण अनंत कहा गया है... अब इस ग्रहण अयोग्य उत्कृष्ट वर्गणा में एक प्रदेश-परमाणु का प्रक्षेप हो तब वह तैजस शरीर को ग्रहण योग्य जघन्य वर्गणा होती है, और वह एक एक प्रदेश की वृद्धि से बढते बढते उत्कृष्ट हो तब तक में अनंत वर्गणा होती है... यहां जघन्य और उत्कृष्ट में जो अंतर है वह कहते हैं- ग्रहण योग्य जघन्य वर्गणा से उत्कृष्ट वर्गणा विशेषाधिक है, और वह जघन्य वर्गणा के अनंतवे भाग प्रमाण... किंतु यह मध्यम वर्गणा भी अनंत है...