Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 卐१-२-१-3 (65) 61 किंतु उसका खुदका आत्मा भी उस वृद्धावस्थामें अपमानित होता है... कहा भी है कि- चमडी (खाल) पे शिकन या झुरीं आयी, शरीर में मात्र हड्डी शेष रही, और शरीरके स्नायु शिथिल हुए, ऐसे वृद्ध शरीर से खुद स्वयं उसका आत्मा भी उभगता (कंटालता) है, तो फिर परिवार के लोगों की तो बात हि क्या कहना ? आबालगोपाल सभी लोगों को दृष्टांत के द्वारा कही हुइ बात बुद्धि में स्थिर होती है, इसीलिये यहां एक कथानक कहते हैं- कौशांबी नगरी में धन से समृद्ध एवं बहोत पुत्रवाला धन नाम का सार्थवाह है, उसने विविध प्रकार के उपायों से धन-समृद्धि प्राप्त की है, और उसने वह धन-समृद्धि बंधुजन, स्वजन, मित्र, स्त्री, पुत्र आदि के उपयोग में दी... उसके बाद वह धन श्रेष्ठी काल के परिपाक से जब वृद्ध हुआ, तब उसने अच्छे प्रकार के लालन-पालन से पुष्ट कीये हुए एवं कला-चतुराइवाले पुत्रों को सभी घरबार एवं व्यवसाय की चिंता का भार सोंपा... उन्होंने भी सोचा कि- "पिताजी ने हमको इतनी अच्छी अवस्था तक पहुंचाया, सभी लोगों में अग्रेसर कीया" इस प्रकार उपकृत ऐसे वे पुत्र कुलीन पुत्रों की तरह स्वयमेव पिताजी की सेवा करते है, अब कोइ बार विशेष.कार्यों की व्यस्तता से उन पुत्रों ने अपनी पत्नीओं को पिताजी की सेवा के लिये सावधान की, और वे भी वृद्ध पिताजी की सेवा उद्वर्तन, स्नान, भोजन आदि समय के अनुकूल निरंतर करती रही... अब दिन बितने पर बढ़ते हुए आयुष्य के साथ अतिशय वृद्धावस्था के कारण से आंख-कान आदि इंद्रियां शिथिल होने लगी संपूर्ण अंगशरीर कांपनेलगा एवं मल-मूत्र आदि द्वार गलने लगते हैं... ऐसे उस वृद्ध पिताजी की परिस्थिति होने पर उन पुत्रवधुओं ने उचित सेवा में बेपरवाइ दीखाइ... अब उचित्त सेवा में बेपरवाइ दिखने से एवं अपने चित्त के अभिमान से और अशुभ कर्मो के उदय से आर्तध्यानादि दुःख समुद्र में डूबे हुए वृद्ध पिताजी ने अपने पुत्रों से पुत्रवधुओं की बेपरवाइ कही... तब अपने पति से तिरस्कार एवं दुःख पाती हुइ उन पुत्रवधुओं ने थोडी बहोत सेवा जो करती-होती थी, वह भी बंध कर दी... और सभी बहुओं ने एक साथ मीलकर बिचार करके अपने अपने पति से कहा कि- हम उचित सेवा करतें हैं तो भी वृद्धावस्था के कारण से विपरीत बुद्धि होने से उचित-सेवा का अपलाप करतें हैं, जुठ बोलतें हैं... यदि आपको हम पे विश्वास नहि है, तो अन्य विश्वासु पुरुष से जांच करो... उन पुत्रों ने भी वैसा हि कीया... अब वे पुत्रवधूएं भी सभी उचित सेवा समय समय पे करने लगी... ___अब एकबार उन पुत्रो ने वृद्ध पिताजी से उचितसेवा बाबत पुछा तब पूर्व हुए संक्लेश के चित्तवाले वृद्ध पिताजी ने पुत्रवधूओं का अवर्णवाद कीया... और कहा कि- वधुएं हमारी सेवा अच्छी तरह से नहिं करती है... अब उन पुत्रों ने यह परिस्थिति और बहुओं के विश्वसनीय