Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 1-2-1-1(3) 45 तथा वह प्राणी प्रमादी है... प्रमाद वास्तव में राग एवं द्वेष स्वरूप है, और द्वेष भी राग. के बिना नहि हो सकता, और राग भी अनादि भव के अभ्यास से जन्म से लेकर मातपितादि संबंधित होता है... उनमें माता संबंधि राग संसार के स्वभाव से उपकार करने के कारण से होता है, और राग होने पर, मेरी मां को भुख-तरस आदि पीडा न हो, इस समझ से वह जीव जीवों की हिंसा स्वरूप कृषि-व्यापार-सेवा आदि क्रियाएं करता है... अथवा तो उस क्रिया में विरोध-अंतराय करनेवाले के उपर द्वेष करता है... या तो उस कृषि आदि क्रिया में सफलता प्राप्त न होने पर वह प्राणी द्वेष करता है... वह इस प्रकार- अनंतवीर्य राजा में आसक्त मां रेणुका के प्रति परशुराम को द्वेष हुआ... इसी प्रकार- यह मेरे पिताजी हैं... यहां भी पिता के कारण से राग और द्वेष होता है... जैसे कि- परशुराम... पिता के उपर राग होने के कारण से, उनके वध करनेवालों के उपर द्वेष होने से परशुराम ने पृथ्वी के क्षत्रियों का सात बार विनाश कीया... सुभूम चक्रवर्ती ने भी इक्कीस (21) बार ब्राह्मणों का विनाश कीया... यह जीव अपनी बहिन (भगिनी) के कारण से भी क्लेश-कष्ट का अनुभव करता है... तथा पत्नी के कारण से भी राग और द्वेष होता है... वह इस प्रकार- अपनी बहिन और जीजाजी आदि से अवज्ञा पाइ हुई पत्नी की प्रेरणा से चाणक्य नंद राजा के पास धन के लिये गया, किंतु वहां नंदराजा से अपमानित चाणक्य ने कोप से पुरे नंद-कुल का विनाश कीया... तथा "मेरे पुत्र जीवित नहिं रहते हैं" ऐसा सोचकर जीववध के आरंभ में प्रवृत्त होते हैं... इसी प्रकार “मेरी पुत्री दुःखी है" ऐसा सोचकर राग-द्वेष के कारण से विनष्ट चित्तवाला तथा परमार्थ को नहिं जाननेवाला जीव ऐसा कुछ पाप करता है, कि- जिस से इस जन्म में एवं जन्मांतर में अनेक संकट-दु:खों को प्राप्त करतें हैं... वह इस प्रकार- जरासंध राजा, जामाता कंस के मरण होने पर अपने सेना-बल के अभिमान से वह प्रतिवासुदेव युद्ध में वासुदेव के द्वारा बल = सेना एवं वाहन के साथ विनष्ट हुआ.. “मेरी पुत्रवधु जीवित नहिं रहती” ऐसा सोचकर मनुष्य आरंभादि में प्रवृत्त होते हैं तथा सखा = मित्र, स्वजन, याने चाचा आदि और उनके भी पुत्र आदि... भत्तीजा, साला... इत्यादि... उनको बार बार देखने से परिचित... अथवा पूर्व परिचित मात-पितादि तथा पश्चात् परिचित सासु-श्वसुर-शाला आदि... यह सभी मेरे संबंधि लोक दु:खी हैं, ऐसा सोचकर संताप करता है... तथा विविक्त याने अच्छे या बहोतसारे हाथी, घोडे, रथ, आसन, मांचडे आदि उपकरण और वे द्विगुण, त्रिगुण इत्यादि भेदवाले उपकरणों का परिवर्तन... तथा लड्डु आदि भोजन एवं वस्त्र आदि मेरे होगें अथवा नष्ट हुए हैं ऐसा सोचकर अतिशयआसक्त लोक शोक करतें हैं...