Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका #1-2-1-2 (64) 5. I सूत्र // 2 // // 64 // 1-2-1-2 . सोयपरिणाणेहिं परिहायमाणे हिं, चक्खुपरिणाणेहिं परिहायमाणेहिं, घाणपरिणाणेहि परिहायमाणेहिं, रसणा-परिणाणेहि परिहायमाणेहिं, फासपरिण्णाणेहिं परिहायमाणेहिं अभिकंतं च खलु वयं, स पेहाए तओ से एगदा मूढभावं जणयंति॥ 64 // II संस्कृत-छाया : श्रोत्रपरिज्ञानैः परिहीयमानैः, चक्षुः परिज्ञानैः परिहीयमानैः, घ्राणपरिज्ञानैः परिहीयमानैः, रसना-परिज्ञानैः परिहीयमानैः, स्पर्शपरिज्ञानैः परिहीयमानैः अभिक्रान्तं च खलु वयः, सः प्रेक्ष्य, ततः सः एकदा मूढभावं जनयन्ति (जनयति) // 64 // III सूत्रार्थ : . क्षीण होते हुए श्रोत्र के ज्ञान से, क्षीण होते हुए आंखो के ज्ञान से, क्षीण होते हुए नासिका के ज्ञान से, क्षीण होते हुए जिह्वा (जीभ) के ज्ञान से, क्षीण होते हुए स्पर्श के ज्ञान से और उम्र मृत्यु के निकट पहुंची है ऐसा देखकर, वह प्राणी एक बार क्षणमात्र काल मूढभाव को प्राप्त करता है // 64 // IV टीका-अनुवाद : . भाषा में परिणत पुद्गलों को जो सुनता है वह श्रोत्र... वह द्रव्य से कदंब पुष्प के आकार का है... और भाव से भाषा के द्रव्यों को ग्रहण करनेवाले लब्धि और उपयोग स्वभाव स्वरूप है... उस श्रोत्र से चारों और से होनेवाला घट-वस्त्रशब्दादि विषय संबंधि ज्ञान... उन श्रोत्र के परिज्ञान में वृद्धावस्था के द्वारा परिक्षीणता को पाने से वह प्राणी इंद्रियों की पटुता के अभाव में एकदा = वृद्धावस्था में अथवा रोगावस्था में मूढभाव = मूढता अर्थात् आत्मा के कर्तव्य और अकर्तव्य की अज्ञता को प्राप्त करता है... अर्थात् हित की प्राप्ति एवं अहित के परिहार याने त्याग के विवेक से शून्य होता है... अथवा क्षीणता को प्राप्त श्रोत्र ज्ञान, आत्मा को सत् और असत् के विवेक से विकल बनाता है... यहां तृतीया विभक्ति प्रथमा विभक्ति से अर्थ में है... इसी प्रकार चक्षु आदि के विज्ञान में भी समझीयेगा... यहां इंद्रियां करण है, इसीलिये श्रोत्र से आत्मा को विज्ञान, चक्षु से आत्मा को विज्ञान इत्यादि... वाक्य रचना जानीयेगा... प्रश्न- आंख आदि इंद्रियां हि क्यों नहि देखती ? / उत्तर- यहां इंद्रियों का स्वरूप जानना आवश्यक है, क्योंकि- आत्मा के अभाव में इंद्रियों से प्राप्त वस्तु के स्मरण का भी अभाव होता है, जब कि- इंद्रियो के विनाश में इंद्रियों से प्राप्त वस्तु का स्मरण होता है... वह इस प्रकार- महल, हवेली में रहे