Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ 56 1 - 2 -1 - 2 (64) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन % 3D यह श्रोत्र आदि इंद्रियों का आकार = संस्थान अनुक्रम से 1. कदंब पुष्प, 2. मसुर, 3. कलंबु का पुष्प, 4. क्षुरप्र = घांस खोदने का खुर्पा और 5. विविध आकार के है... तथा उनके विषय-बारह योजन से आये हुए शब्द को श्रोत्रंद्रिय ग्रहण करती है, कुछ अधिक 21 लाख योजन दूर रहे हुए प्रकाशक एवं कुछ अधिक एक लाख योजन दूर रहे हुए प्रकाश्य रूप को चक्षुरिंद्रिय (आंखे) ग्रहण करती है... बाकी की शेष घ्राण, रसना एवं स्पशेंद्रिय तो नव योजन से आये हुए अपने विषय को ग्रहण करती है... तथा जघन्य से सभी इंद्रियां अंगुल के असंख्येय भाग क्षेत्र में रहे हुए अपने अपने विषयों को ग्रहण करती हैं... यहां उत्पत्ति की अपेक्षा से विपरीत क्रम से इंद्रियो का कथन कीया है, क्योंकि- यहां संज्ञी पंचेंद्रिय को हि उपदेश देना, “यह यहां अधिकार है..." और उपदेश श्रोत्रंद्रिय का विषय है, और श्रोत्रंद्रिय की पर्याप्ति में सभी इंद्रियां की पर्याप्ति सूचित होती है... तथा श्रोत्र आदि का ज्ञान भी बहोत सारी उम्र बीतने के बाद क्षीण होता है, अथवा श्रोत्र आदि के ज्ञान उम्र बढने से वृद्धत्व में क्षीण होता है... प्राणीओं के शरीर की कालक्रमसे होनेवाली यौवनादि अवस्था = उम्र, वृद्धावस्था अथवा मृत्यु से आक्रांत होती है... कहा भी है कि- उम्र के चार भेद है, कुमार, यौवन, मध्यम (प्रौढ) एवं वृद्धावस्था... अन्यत्र भी कहा है कि- पहेली उम्र में यदि अभ्यास-अध्ययन न कीया, दुसरी उम्र में धन प्राप्त न कीया, तीसरी उम्र में तप नहि कीया वह प्राणी चौथी उम्रमें क्या कर पाएगा? उनमें प्रथम दो उम्र बीतने पर मनुष्य वृद्धावस्था के अभिमुख होता है, अथवा तो उम्र के तीन भेद करें... 1. कुमार, 2. यौवन और 3. स्थविर... कहा भी है कि- कुमार अवस्था में पिताजी रक्षण करते हैं, यौवन अवस्था में भर्ता = स्वामी-पति रक्षण करतें हैं और स्थविर अवस्था में पुत्र रक्षण करते हैं... इस प्रकार स्त्रीओं को अपनी सुरक्षा में स्वतंत्रता की आवश्यकता नहिं है... अन्य प्रकार से भी उम्रके तीन भेद हैं... बाल, मध्यम और वृद्धत्व... कहा भी है कि- जन्म से सोलह साल (वर्ष) पर्यंत बाल उम्र और सत्तरह (17) से सित्तेर (70) वर्ष पर्यंत मध्यम उम्र और उसके बाद वृद्ध उम्र कही गइ है... इन सभी उम्र में जो उपचय (पुष्टि) वाली अवस्था तथा वह बाल उम्र है, तथा मध्यम उम्र बीत जाने पर श्रोत्र, चक्षु, घ्राण, जिह्वा और स्पर्शनेंद्रिय के ज्ञान सभी प्राणीओं के या कितनेक के अल्पांशे या सर्वांशे क्षीण होने से हि प्राणी मूढता को प्राप्त करता तथा मरण नजदीक में है ऐसा देखकर भी प्राणी मूढता को प्राप्त करता है... इस प्रकार इंद्रियों के ज्ञान की हानि से अथवा उम्र बीत जाने से प्राणी वृद्धावस्था में किंकर्तव्यमूढ होता है, अर्थात् उस प्राणी को क्षीण हुए श्रोत्र आदि के ज्ञान हि मूढभाव को उत्पन्न करतें हैं...