Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 1-2-0-03 अब तैजस शरीर योग्य उत्कृष्ट वर्गणा में एक परमाणु अधिक हो तब अग्रहण वर्गणा होती है... इस प्रकार एक दो आदि परमाणु की वृद्धि, उत्कृष्ट पर्यंत हो, तब तक में अनंत वर्गणा होती है, किंतु वे बहुप्रदेशी एवं सूक्ष्म परिणामी है, अत: तैजस शरीर के अयोग्य है एवं भाषा-द्रव्य के लिये भी अयोग्य है क्योंकि- भाषा के लिये जैसी वर्गणा चाहिये उससे यह वर्गणा अल्प प्रदेशवाली है और बादर है... तैजस शरीर योग्य जघन्य वर्गणा से उत्कृष्ट वर्गणा अनंतगुण है, और वह अनंत संख्या अभव्य से अनंतगुण एवं सिद्ध से अनंतवे भाग प्रमाण होती है अर्थात् अनंत वर्गणा है... __ अब तैजस शरीर को ग्रहण अयोग्य उत्कृष्ट वर्गणा में एक परमाणु का प्रक्षेप हो तब भाषा ग्रहण योग्य जघन्य वर्गणा होती है... उसमें एक एक प्रदेश की वृद्धि से उत्कृष्ट वर्गणा पर्यंत में बीच में अनंत वर्गणा होती है... यहां भी अनंत परमाणुवाली भाषा वर्गणा की जघन्य वर्गणा के अनंतवां भाग. अधिक परमाणु-प्रदेश की वृद्धि हो तब उत्कृष्ट वर्गणा होती है, अतः मध्यम वर्गणा अनंत हैं... अब यहां से आगे एक एक परमाणु की वृद्धि के क्रम से होनेवाली वर्गणा भाषा के लिये अग्रहण योग्य होती है, और उनमें क्रम से जब अभव्य से अनंतगुण एवं सिद्ध के अनंतवे भाग के परमाणु-प्रदेश की वृद्धि हो तब उत्कृष्ट वर्गणा होती है... यह सभी वर्गणांएं पूर्व कहे गये कारणों से भाषा के लिये और श्वासोच्छ्वास के लिये अग्रहण योग्य - अब अग्रहण योग्य इस उत्कृष्ट वर्गणा में एक प्रदेश परमाणु का प्रक्षेप हो तब श्वासोच्छ्वास के लिये ग्रहण योग्य जघन्य वर्गणा होती है... अब एक एक प्रदेश-परमाणु की वृद्धि से बढ़ते हुए उत्कृष्ट वर्गणा पर्यंत में अनंत वर्गणा होती हैं और वह उत्कृष्ट वर्गणा जघन्य ग्रहण योग्य वर्गणा के अनंतवे भाग प्रमाण अधिक परमाणुवाली है... अब इसके आगे एक परमाणु की वृद्धि हो तब श्वासोच्छ्वास के लिये भी अग्रहण योग्य जघन्य वर्गणा होती है, और वे एक एक प्रदेश की वृद्धि से अभव्य से अनंतगुण एवं सिद्ध के अनंतवे भाग के परमाणु की वृद्धि हो तब तक में अग्रहण योग्य उत्कृष्ट वर्गणा होती है... ___ अब इस अग्रहण योग्य उत्कृष्ट वर्गणा में एक परमाणु का प्रक्षेप हो तब मनोद्रव्य के ग्रहण योग्य जघन्य वर्गणा होती है और आगे एक एक प्रदेश की वृद्धि के अनुक्रम से जघन्य वर्गणा के अनंतवा भाग अधिक परमाणुवाली वर्गणा हो तब मनोद्रव्य के ग्रहण योग्य उत्कृष्ट वर्गणा बनती है... अब यहां से आगे भी एक एक प्रदेश की वृद्धि के अनुक्रम से अग्रहण योग्य वर्गणाएं भी अभव्य से अनंतगुण एवं सिद्ध से अनंतवे भाग प्रदेश प्रमाण अधिक वाली यह सभी वर्गणांएं जघन्य से लेकर उत्कृष्ट पर्यंत अग्रहण योग्य है, क्योंकि- यह सभी मनोद्रव्य की अपेक्षा से बहुप्रदेशवाली एवं अति सूक्ष्म हैं अतः मनोद्रव्य के लिये अग्रहण योग्य हैं एवं कार्मण की अपेक्षा से अल्प प्रदेश एवं बादर होने से कार्मण के लिये भी अग्रहण योग्य हैं...