Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ 22 1 -2-0-0" श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन 3. हुए, पुरे शरीर में पसीना (प्रस्वेद) हो ऐसा चित्र, प्रतिमा आदि कषाय की सद्भाव स्थापना और अक्ष, वराटक में असद्भाव स्थापना... द्रव्य-कषाय- ज्ञ शरीर, भव्य शरीर तद्व्यतिरिक्त, तद्व्यतिरिक्त द्रव्य कषाय के दो भेद = 1. कर्मद्रव्यकषाय, 2. नोकर्मद्रव्यकषाय... उनमें ग्रहण योजना, ग्रहण कीये हुए, उदय में नहिं आये हुए और उदय में आये हुए पुद्गल द्रव्य की अप्रधानता से कर्मद्रव्य कषाय, और बिभीतका (बहेडा-आंवला) आदि नोकर्मद्रव्य कषाय, . शरीर, उपधि, क्षेत्र, वास्तु (मकान) स्थाणु आदि उत्पत्तिकषाय है, क्योंकि- उनके आधार से कषायों की उत्पत्ति होती है... कहा भी है कि- इससे अधिक कष्ट और क्या है ? कि- मूर्ख मनुष्य स्थाणु-ठुठे-खीले से टकराकर स्थाणु पे गुस्सा करता है, वह अपने अनुपयोग-प्रमाद पे गुस्सा नहिं करता.... प्रत्यय कषाय = कषायों के बंध का जो कारण हैं वह प्रत्यय... और वे हैं शुभ या अशुभ शब्दादि विषय... इसलिये उत्पत्ति यह कार्य है और प्रत्यय यह कारण है... आदेश कषाय = अन्य के हुकम से कीया गया भृकुटी आदि मुख विकार... रस कषाय = कटु, तिक्त, कषायरस आदि रस पंचक के अंतर्गत... भाव कषाय = शरीर उपधि क्षेत्र वास्तु (घर) स्वजन, चाकर, अर्चा आदि निमित्तों से प्रगट हुआ, शब्द आदि कामगुणो के कारण से कार्य स्वरूप कषाय मोहनीय कर्म के उदय से आत्मा का परिणाम विशेष हि क्रोध, मान, माया, लोभ स्वरूप भावकषाय है... और उन एक एक के अनंतानुबंधि, अप्रत्याख्यानीय, प्रत्याख्यानीय और संज्वलन भेद से सोलह (16) होतें हैं 4 4 4 = 16... इन कषायों के स्वरूप अनुबंध और फल तीन गाथा से कहते हैं... कषाय स्वरूप सा . अनंतानुबंधि क्रोध पर्वत की तिराड याने फाट के समान है... अप्रत्याख्यानीय क्रोध पृथ्वी की फाट के समान है... प्रत्याख्यानीय क्रोध रज-रेती में लकीर के समान है... संज्वलन क्रोध जल-पानी में लकीर के समान है... अनंतानुबंधी मान पत्थर के थंभे के समान है... अप्रत्याख्यानीय मान हड्डी के थंभे के समान है... प्रत्याख्यानीय मान लकडी के थंभे के समान है... संज्वलन मान नेतर की सोटी के समान है... अनंतानुबंधि माया घन वंश के मूल के समान है...