Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 1-2-0-04 अप्रत्याख्यानीय माया भेड के शिंग के समान है... प्रत्याख्यानीय माया संज्वलन माया लकडी की छोल के समान है... अनंतानबंधि लोभ किरमजी (गहरा-पक्के लाल रंग) के समान है... किरमजी (गा-पम् = अप्रत्याख्यानीय लोभ काजल के समान है प्रत्याख्यानीय लोभ कादव-कीचड के समान है... संज्वलन लोभ हलदी के रंग के समान है... अनंतानुबंधि क्रोध मान माया लोभ... जीवन पर्यंत रहेतें हैं और नरक गति देते हैं... अप्रत्याख्यानीय क्रोध मान माया लोभ... एक वर्ष तक रहतें हैं और तिर्यंच गति देते हैं... प्रत्याख्यानीय क्रोध मान माया और लोभ... चार महिने तक रहतें हैं और मनुष्य गति देते हैं... संज्वलन क्रोध मान माया और लोभ... पक्ष (15 दिवस) तक रहते हैं, और देवगति देते हैं... इस प्रकार नाम आदि आठ निक्षेपवाले कषायों में से कौनसा नय किसको चाहता है ? यह बात अब कहतें हैं... नैगम नय = सामान्य एवं विशेष दोनों को ग्रहण करनेवाले इस नैगमनय में, कोइ एक गम (विकल्प-भंग) न होने से नैगमनय के अभिप्राय से कषाय के नाम आदि सभी निक्षेप सत्य है... 2-3. संग्रह एवं व्यवहार नय = कषायों के संबंध के अभाव में आदेश और उत्पत्ति निक्षेप नहिं चाहतें... 4. ऋजुसूत्र नय = वर्तमान परिस्थिति को चाहनेवाला यह नय आदेश, उत्पत्ति और स्थापना को नहि चाहता... 5-6-7. शब्द-समभिरूढ और एवंभूतनय = कषाय-कथंचित् नाम एवं भाव के अंतर्गत होने से नाम एवं भाव निक्षेप चाहते हैं... इस प्रकार कषाय हि कर्मो के कारण है और कर्म संसार का कारण है... अब संसार के प्रकार-भेद स्वरूप निक्षेप कहते हैं... नि. 182