Book Title: Abhidhan Rajendra Kosh Part 01 Shabdarth Vivechan - Shabdona Shikhar
Author(s): Rajendrasuri, Vaibhavratnavijay
Publisher: Raj Rajendra Prakashan Trust
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________________ પરિવારને આપવા બદલ અમો હરહંમેશ પ્રકાશકોનાં ઋણી अध्ययन कर असीम उपकार किया था। पूज्य मुनिराजश्री वैभवरत्र २शुं. विजयजी म.सा.ने ग्रन्थरत्र के प्रथम भाग का अनुवाद कर प्रकाशित करवाकर जिज्ञासुओं पर उपकार किया है। मुझे पूर्ण विश्वास है આ ગ્રંથ સૌ કોઈના મોક્ષલક્ષનું કારણ બને તેજ મંગળ कि मुनिराजश्री का यह ज्ञानयज्ञ निरन्तर चलता रहेगा और एक કામના. સહ दिन वे सभा सातों भागों का अनुवाद का एक कीर्तिमान स्थापित माए युनामा नाग२६८स परिवार करेंगे। में उनके इस कार्य की अनमोदना करते हए अपनी ओर . તેજલ ગડ - ઉજન દ્વારા से हार्दिक शुभकामनाएँ प्रेषित करता हूँ कि वे अपने इस कार्य में पूर्ण सफल हों। श्रद्धय आचार्य भगवन् श्रीमद् विजय जयन्तसेन પિત શુભકામના પત્ર सूरीजी म.सा. का आशीर्वाद उनके साथ है जो उन्हें सफलता र्दिक शुभकामना दिलाने के लिये पर्याप्त हो / एक बार पुनः हार्दिक डॉ. तेजसिंह गौड, उज्जैन (म.प्र.) शुभकामनाएँ। विश्वपूज्य, प्रातः स्मरणीय गुरुदेव श्रीमज्जैनाचार्य श्रीमद् ( ... संघवी (था) द्वारा भजेको विजय राजेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. जितनी उच्च कोटि के साधक શુભકામના પત્ર थे, उतने ही श्रेष्ठ साहित्य मनीषी भी थे। इसका प्रमाण उनके द्वारा विविध विषयक लिखित, अनुदित ग्रन्थ है। उनके द्वारा लिखित રચાયેલ “અભિધાન રાજેન્દ્ર કોષ” શ્રેષ્ઠ અમર કૃતિ बहुचचित विश्व विख्यात ग्रन्थरत्न है 'अभिधान राजेन्द्र कोश / ' इस ग्रन्थरत्न का लेखन गुरुदेव ने अपने सियाणा चातुर्मास में સ છે. જે સંસ્કૃત અને પ્રાકૃત ભાષામાં હોવાથી ઘણા લોકો એના 7 वि.सं. 1946 आश्विन शक्ला द्वितीया से आरम्भ किया था और सामथा वायतता. अना प्रथम भागनु °४२ती अनुवाद वि.सं. 1960 चैत्र शक्ला त्रयोदशी (महावीर जयंती) को उनका प्राशन स्वाध्यायीसी भाटघ ७५योगी थशे.बी हमाग यह लेखन पूर्ण हुआ। यह कोशरत्र सात भागों से विभक्त है और 59 जून ही मशित थाय थे अभ्यर्थना अनेशन प्राकृत भाषा का महाविशाल कोश है। भाटे पूज-पूष अमिनहन. वर्तमान समय में भौतिक में संस्कृत और प्राकृत भाषाओं के विद्वानो तो ठीक जानकार भी नहीं के बराबर है। जैन विद्या के . સુવિશાલગચ્છાધિપતિ પ.પૂ. આચાર્યદેવેશ શ્રીમદ્ अध्ययन के लिए यह महाकोश अत्यन्त आवश्यक है। इसके | વિજય જયન્તસેનસૂરીશ્વરજી મ.સા.ના આશીર્વાદથી અને તેમની अध्ययन के बिना जैन विद्या का अध्ययन अधरा ही रहा जाएगा पावन२५४थी पू. मुनिश्री वैभवरत्न वि०४५७ श्रुतसेवा। एस ग्रन्थरत्न पर शोधार्थियों ने शोधकार्य की पी.एच.डी. की प्राशननुभभूत अर्थ उरी २६॥छे.तमसममिल भारतीय उपाधि प्राप्त की थी और आज भी अनेक विषय अछूते ही है। त्रिस्तुति न संघ गौरवनो अनुभव छे. हा इस पर और अध्ययन न हो पाना भाषा की अनभिज्ञता ही कही शमशमना. जा सकती है। इस ग्रन्थरत्न की उपयोगिता को ध्यान में रखकर कई જ્ઞાનનો મહાસાગર वर्षो से इसके हिन्दी अनुवाद को आवश्यकता की चर्चाचल रही थी। कुछ कार्य भी हआ किन्तु पुनः बन्द हो गया। ऐसा क्यों होता 5.5. मुनि श्रीवैभव२त्तवि४५० म.सा. रहा यह एक अलग प्रश्न है / स्वयं राष्ट्रसंत आचार्य श्रीमद् सा६२ वहना विजय जयन्तसेन सूरीश्वरजी म.सा. भी इस विषय पर अनेकबार भा५श्री सुषशातामा शो. विचार मंथन कर चुके है और अज्ञात समस्याओ के रहते अनुवाद પ્રાતઃ સ્મરણીય વિશ્વ પૂજય દાદા ગુરૂદેવ પ.પૂ.આચાર્ય कार्य नहीं हो सका / हार्दिक प्रसन्नता की बात है कि श्रद्वेय भगवंत श्री शन्द्रसूरीश्व२० महा२।४ भेजने अंथोनी आचार्यश्री ने विद्वान शिष्यरत्न मनिराजश्री वैभवरत्न विजयजी २थनारी शासन ने भेट ४२८.छ. 2 // सर्व थोमा शिरभार म.सा.ने कठोर अध्यवसायपूर्वक प्रस्तुत ग्रन्थरत्न के प्रथम भाग मेवो भागमा ५४यश्री. द्वारा स्थायब शानना महासागर का हिन्दी अनुवाद ही उसे 'शब्द का शिखर' के नाम से प्रकाशित सभी अभियान रान्द्रशेष तेसोश्रीनी वर्षानी तट संयभीकरवा रहे है। તપસ્વી જીવનની સાધનાનું મૂર્તિમંત સ્વરૂપ - વિધ્વત્તાનો અજોડ परम श्रीद्वेय गुरुदेव श्रीमद् विजय राजेन्द्र सूरिजी म.सा.ने नमुनो. उक्त ग्रन्थरत्न की रचना नित्यानने (99) ग्रन्थों का तल स्पर्शी पून्यसाधु-साध्वी भगवती हि परंतु विश्वमis 10