Book Title: Abhidhan Rajendra Kosh Part 01 Shabdarth Vivechan - Shabdona Shikhar
Author(s): Rajendrasuri, Vaibhavratnavijay
Publisher: Raj Rajendra Prakashan Trust
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________________ विजयजी महाराज इस दिशा में कार्यरत् हैं / वे जो कुछ भी प्राप्त करेंगे, वह समाज / संस्कृति के लिये अमूल्य धरोहर होगी। ( मनोरखा पुराशि (क्षि) बारा मेरी ओर से हार्दिक शुभकामनाएं अर्पित हैं। શુભકામના પત્ર शांतिलाल रामानी प.पू. विश्ववंद्य, त्रिस्तुतिक सिद्धान्त के पुनरोद्वारक राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रकट प्रभावी, प्रखर विद्वान अ.भा.श्री राजेन्द्र जैन नवयुवक परिषद दादा गुरुदेव श्री मद्विजयराजेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. का अद्वितीय, अनमोल अनूठी कृति हैं श्री ) जिन शासन को 14 वर्षों के परिश्रम से दिया गया शास्वत अभिधान राजेन्द्र कोश अवदान ___ "श्री अभिधान राजेन्द्र" / प्राकृत शब्दकोष / जिसका शब्द ब्रह्म है। उसमें स्फोट शक्ति है। वह ध्वनि स्फुरित अध्ययन / अवगहन दुरुह। करता है तथा आध्यात्म की योग साधना उसे नाद तक पहुंचती है दादा गुरुदेव की प्रतिमाओं की संख्या को तीन सौ की | जिसमें नाद की अनुभूति धनीभूत हो जाती है, वह सार्थक संख्या का स्पर्श करवाते, उनकी महीमा का प्रसार, प्रचार, मण्डन जीवन की ओर उध्वगमन की तैयारी करता है। इन्ही शब्दों की करवाते अपने गुरु अखूट पुण्य भण्डारी, अवतारी श्रीमद् अर्थ, भावार्थ, नियुक्ति, दृष्टान्तो एवं रहस्यों की छैनियों से तराशने विजयजयन्तसे नसूरीश्वरजी म.सा. के आशीर्वाद से का सुकार्य योगीराज प्रबल प्रतापी गुरुदेव जैनाचार्य श्रीमद् विजय "अभिधानराजेन्द्र" में प्रकट हुई अपनी सुचि की अभिव्यक्ति राजेन्द्रसूरीश्वरजी महाराज ने कुशलतापूर्वक तपोमय प्रयासों के विद्वान मुनिप्रखर श्री वैभवरत्नविजयजी ने इस पुस्तक को तैयार साथ किया। उनकी यही अनमोल, अनूठी, अद्वितीय देन करके की है।। अभिधान राजेन्द्र कोष के रुप में विश्व विद्या तथा वाड्मय के मंच श्रीसंघ का इन से आगे भी ऐसी ही अपेक्षा है। अपने पर अद्भूत हुई। उनने जो कुछ किया वह संस्कृति एवं संस्कृत अध्ययन मनन को चिन्तन तक पहुंचाने मे इन्हे दादा गुरुदेव से के लिये चमत्कार था। प्राकृत अर्थ मानधी तीर्थकर श्री महावीर आशीर्वाद मिलता रहे ऐसी कामना के साथ स्वामी के युग में संस्कृत की लोकभाषा भी, इसकी सर्व व्यापकता Arju शीना भोक्षपक्षSRI) की दृष्टिगत कर तीर्थंकरदेव ने इसी को अपनी वाणी व लेखन ने का माध्यम बनाया / इसी लोकभाषा के शब्दों में गुरुदेवश्री ने सर्वांगीण आयाम देकर प्राण फूंकने में सफलता पाई। पूज्य गच्छाधिपति राष्ट्रसंत जैनाचार्य श्रीमद् विजय जयन्तसेनविजयजी शत शत वहन..... પરમ પૂજય પ્રાતઃ સ્મરણીય ગુરુદેવ શ્રી महाराज के सुशिष्य आध्यात्मस्वी मुनिराज श्री वैभवरत्नविजयजी महाराज इस शब्दकोष को विश्लेषण के द्वारा विविध खण्डों में / 3 રાજેન્દ્રસૂરીશ્વરજી वर्गीकृत कर विश्व के ज्ञानपुंज से जोड़ने का प्रशंसनीय प्रयत्न મહારાજા દ્વારા નિર્મિત મહાન ગ્રંથ “શ્રી રાજેન્દ્ર शोष" कर रहे हैं। यह साहस, परिश्रम तथा ज्ञान साधना का कार्य है। તે જૈન શાસનનું અદ્ભુત નઝરાણું છે. इस हेतु हादिक सविनय साधुवाद समर्पण एवं सफलता की ___ "श्री राजेन्द्र शोध..." विद्वानो तथा शिसुमो कामना की हादिक इच्छा। आपका यह प्रयास शब्दों के नाद को विश्व के कोने कोने तक पहुंचाये, ऐसी मंगलेच्छा। માટે અતિ ઉપયોગી પથદર્શક ગ્રંથ છે. તે મહાન ગ્રંથનું ગુજરાતી અનુવાદ કરી આપે મહાન કાર્ય કરેલ છે તે મહાન ગ્રંથનો - सूरेन्द्रजी लोढा (शाश्वतधर्म) ગુજરાતી અનુસાર અનેક રીતે જિનશાસનને ઉપયોગી થશે. આ ભગીરથ કાર્ય બદલ આપને લાભ-લાભ ધન્યવાદ. આવા ગ્રંથના ગુજરાતી અનુવાદના મુદ્રણ તથા પ્રકાશનના આમંત્રણ પ્રસંગે અમારા પરિવારની અંત:કરણપૂર્વક શુભકામના પાઠવીએ છીએ તથા આ કાર્યનો લાભ અમારા