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( २ ) (घ) तीर्थंकर पद-अन्तर
जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणिए कति तित्थगरा पण्णत्ता ?
गोयमा ! चउवीसं तित्थगरा पण्णत्ता, तंजहा-उसभअजिय-संभव-अभिनंदण-सुमति-सुप्पभ-सुपास-ससि-पुष्पदंत-सीयल सेज्जंस - वासुपुज - विमलअणंत-धम्म-संति-कुंथु-अर-मल्लि-मुणिसुव्वय-नमि-नेमि-पास-वद्धमाणा।
एएसिणं भंते चउवीसाए तित्थगराणं कति जिणंतरा पण्णत्ता ? गोयमा ! तेवीसं जिणंतरा पण्णत्ता।
-भग० श २०/उ ८/सू० ६७, ६८ इस जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में इस अवसर्पिणी काल में चौबीस तीर्थकर हुए है। यथा-१-ऋषभ, २-अजित, ३-संभव, ४-अभिनन्दन, ५-सुमति, ६-सुप्रभ, (पद्मप्रभु ), ७-सुपाश्व, ८-शशि, (चंद्रप्रभु ), ६-पुष्पदंत, १०-शीतल, ११श्रेयांस, १२-वासुपूज्य, १३-विमल, १४-अनन्त, १५-धर्म, १६-शान्ति, १७कुन्थु, १८-अर, १६-मल्लि, २०-मुनिसुव्रत, २१-नमि, २२-नेमि, २३–पार्श्व नाथ तथा २४-वर्धमान ।
चौबीस तीर्थंकरों के तेईस अन्तर है । तेईसवां अन्तर पार्श्वनाथ और वर्धमान का है। इनका अंतर २५० वर्ष कहा है।
(च) वर्धमान और सप्रतिक्रमण सहित पाँच महाव्रत
एएसुणभंते ! पंचसु भरहेसु पंचसु एरवएसु, पुरिम-पञ्चच्छिमग्गा दुवे अरिहंता भगवंतो पंचमहव्वइयं (पंचागुम्वइयं ) सपडिक्कमणं धम्मं पण्णवयंति । अवसेसा णं अरहंता भगवंतो चाउजामं धम्मं पण्णवयंति ।
__ -भग० श २०/उ ८ सू /६६ पाँच भरत और पाँच ऐरवत क्षेत्रों में प्रथम और अन्तिम--ये दो अरिहंत भगवन्, पाँच महाव्रत (और पाँच अणुव्रत ) और सप्रतिक्रमण धर्म का उपदेश करते हैं। शेष अरिहंत भगवान् चार याम ( महावत ) रूप धर्म का उपदेश करते हैं । (छ) वर्धमान तीर्थंकर तथा पूर्वगत श्रुत
जंबुद्दीवेणंभंते ! दीवे भारहे वासे इसीसे ओसप्पिणीए देवाणुप्पियाणं केवइयं कालं पुव्वगए अणुसजिस्सइ ।
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