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भावस्ती नगरी में शृगारक यावत् राजमार्ग में बहुत से मनुष्य कहने लगे यावत प्ररूपणा कहने लगे-“हे देवानुप्रियो ! श्रावस्ती नगरी के बाहर, कोष्ठक उद्यान में दो जिन परस्पर संलाप करते है, उनमें से एक इस प्रकार कहता है कि तू पहले काल कर जायेगा और दूसरा उसे कहता है कि तु पहले मर जायेगा। इन दोनों में न मालूम कौन सत्यवादी है और कौन मिथ्यावादी है। उन लोगों में से जो प्रधान मनुष्य है वे कहते हैं कि श्रमण भगवान महावीर स्वामी सत्यवादी है और मंखलिपुत्र गोशालक मिथ्यावादी है । १३ श्रमण निग्रंथों को गोशालक के साथ वार्तालाप करने का आदेश __'अजो' ति समणे भगवं महावीरे समणे णिग्गंथे आमंतित्ता एवं घयासी-भज्जो'! से जहाणामए तणरासी इषा कढरासी इ वा पत्तरासी {षा तयारासी हवा तुसरासी इ वा भुसरासी इवा गोयमरासी इ वा अवकररासी या अगणिझामिए अगणिझसिए अगणिपरिणामिए हयतेए गयतेए बहुतेए भट्टतेए लुत्ततेए विणकृतेए जाप एवामेव गोसाले मंखलिपुत्ते मम वहाए सरीरगंसि तेयं णिसिरेत्ता हयतेए गयतेए जाव विणहतेए जाए, तं छदेणं अजो। तुब्भे गोसालं मखलिपुत्तं धम्मियाए पडिचोयणाए पडिचोयह, धम्मि०२ पडिचोएत्ता धम्मियाए पडिसारणाए पडिसारेह, धम्मि० २ पडिसारित्ता धम्मिएणं पडोयारेणं पडोयारेह, धम्मि० २ पडोयारेत्ता अढे हि य हेऊहि य पसिणेहि य वागरणेहि य कारणेहि या णिप्पपसिषणवागरणं करेह ।
-भग० श १५॥प्र ११६।पृ० ६८४ तत्पश्चात श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने श्रमणो निर्ग्रन्थों को संबोधित कर कहा-हे आर्यो ! जिस प्रकार तृण-राशि, काष्ठराशि, पत्रराशि, त्वचा (छाल) राशि, तषराशि, भूसाराशि, गोमय (गोबर) राशि, और झवकर (कचरा) राशि, अग्नि से दग्ध, अग्नि से नष्ट एवं परिणामान्तर को प्राप्त होती है और जिसका तेज हत हो गया हो, तेज चला गया हो, नष्ट हो गया हो, भूष्ट हो गया हो, लुप्त हो गया हो यावत् उसी प्रकार मंखलिपुत्र गोशालक ने मेरे वध के लिए अपने शरीर से तेजो लेश्या बाहर निकाली थी, अब उसका तेज हत (नष्ट) हो गया है यावत् उसका तेज नष्ट विनष्ट, भ्रष्ट हो गया है। इसलिये हे आर्यो ! अब तुम अपनी इच्छानुसार गोशालक के साथ धर्म-चर्चा करो। धार्मिक प्रतिप्रेरणा, प्रतिसारणा आदि करो और अर्थ, हेतु, प्रश्न, व्याकरण और कारणों के द्वारा पूछे हुए उत्तर का प्रश्न बन सके, इसप्रकार उसे निरूत्तर करो।
विवेचन-गोशालक के साथ धार्मिक चर्चा और प्रश्नोत्तर आदि करने के लिए भगवान ने पहले साधओं को मना किया था, परन्तु अब गोशालक के तेजो लेश्या के प्रभाव से रहित होने के बाद भगवान ने धर्मचर्चा करने की छूट दी। इसका कारण यह है कि चर्चा सुनकर गौशालक के अनुयायी अनेक स्थविर, उसके मत का त्याग कर सत्य मार्ग को अंगीकार कर सके।
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