Book Title: Vardhaman Jivan kosha Part 3
Author(s): Mohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
Publisher: Jain Darshan Prakashan

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Page 497
________________ घत्ता-णिय-इच्छा पच्छह भीच्या जीवहु वेय समग्ग। णासंता जंतहु भद-गहणि मच्चु-णामकरि लग्गउ॥ -वीरजि• संधि ४/कड ६ कुमार ने उत्तर दिया-एक ललितांग धूर्त किसी नगर में रहता था और राग-रंग में आसक्त था। इसको देखकर राजा की मणि-मेखला-धारिणि एक रानी काम पीड़ा से विह्वल हो उठी। उसने अपनी धात्री के द्वारा उसे पश्चिम द्वार से बुलवा लिया और उसके साथ रमण किया। यह बात सनकर परिवार को ज्ञात हो गयी और राजा को उसकी सूचना मिल गयी। तब रानी ने उसको छिपाने के लिए अपने अशुचि मल से पूर्ण शौच स्थान में डलवा दिया। वहाँ कीड़े उसे खाने लगे और वह दुःख पाते हुए प्राण छोड़कर नरक को गया। जिस प्रकार वह धूर्त भोगासक्त होने के कारण इस विपत्ति में पड़ा, वैसे ही स्त्री के प्रेम में अनुरक्त हुआ मनुष्य मरण को प्राप्त होता है। एक भीरु मनुष्य भवरुपी वन में जा रहा था। उसके पीछे स्वेच्छा से मृत्यु नामक वेगवान हाथी लग गया। उसके भय से वह जीव भाग खड़ा हुआ। .८ जम्बूस्वामी को केवलज्ञान-प्राप्ति पत्तइ बारहमइ संघच्छरि। चित्त - परिहि वियलिय - मच्छरि ॥ पंचमु णाणु एष्टु पावेसह । भवु णामेण महारिसि होस। तेण समउ महियलि विहरेसइ ।। दह-गुणिय चत्तारि कहेसह । परिसर धम्मु सव्व - भवोहहं । विद्ध सिय बहु - मिच्छा मोहहं । अन्तिमकेवनि उप्पज्जेसह । महु पहु - वंसहु उण्णइ होस । -वीरजि• संधि ४/कड ७ इसके पश्चात बारहवाँ वर्ष आने पर वे अपने मन को समाधि में स्थित कर राग-द्वेष रहित होते हुए पंचम शान अर्थात केवलज्ञान को प्राप्त करेंगे। उनके शिष्य भवनामक ऋषि होवेंगे। उसके पास जम्बूस्वामी महितल पर विहार करते हुए दश गुणित चार अर्थात चालिस वर्ष तक समस्त भव्म जीवों को धर्म का उपदेश देवेंगे। और उनके मिथ्यात्व और मोह का विध्वंस करेंगे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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