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फिर कनकोज्ज्वल नाम का विद्याधरों का राजा हुधा, फिर सप्तम स्वर्ग में देव हुआ। फिर हरिषेण राजा हुआ, फिर महाशुक्र स्वर्ग में देव हुआ, फिर प्रियमित्र नाम का चक्रवर्ती हुआ, फिर सहस्रार स्वर्ग में सूर्यप्रम नाम का देव हुआ, वहाँ से आकर नन्द नाम का राजा हुआ, फिर अच्युत स्वर्ग के पुष्पोत्तर विमान में उत्पन्न हुआ और फिर वहाँ से च्युत होकर वर्धमान तीर्थकर हुआ है---जो पंचकल्याण रूप महाऋद्धि को प्राप्त हुआ है तथा जिन्हें मोक्ष लक्ष्मी प्राप्त हुई है। .८ फूटकर प्रसंग-भगवान् के सम्बन्ध में
.१ भगवान महावीर का परिनिर्वाण
समणे भगवं महावीरे अंतिमराइयंसि पणपण्णं अज्मयणाई कल्लाण फलाधिवागाई पणपणं अज्झयणाणि पावफलविवागाणि धागरिता सिद्ध बुद्ध मुत्ते अंतगडे परिणिव्वुडे सव्वदुक्खप्पहीणे ।
-सम. सम ५५४
टीका-'अन्तिमरायसि' त्ति सर्वायुःकालपर्यापसान रात्रौ रात्रेरन्तिमे भागे पापायां मध्यमायां नगर्या हस्तिपालस्य राशः करण लभायां कार्तिकमासामावस्यायां स्वाति नक्षत्रेण चऽमसा युक्तेन नागकरणे प्रत्युषसि पर्यङ्कासननिषण्णः पंचपंचाशदध्ययनानि 'कल्लाणफलविवागाई' त्ति कल्याणस्य
पुण्यस्य कर्मणः फलं-कार्य विपाच्यते-व्यक्ती क्रियते वैस्तानि कल्याणफलविपाकानि, एवं पापफलविपाकानि व्याकृत्य-प्रतिपाद्य सिद्धो बुद्धः यावत्करणात्, मुत्ते अंतकडे परिनिव्वुडे सम्वदुक्खप्पहीणं । त्ति दृश्य ।
भगवान महावीर ने पचपन अध्ययन कल्याणफल व पचपन अध्ययन पापफल विपाक के कथन कर- हस्तिपाल राजा की सभा में, कार्तिक कृष्ण अमावस्या को पर्य'कासन में सिद्ध हुए यावत् सर्व दुःखों से मुक्त हुए।। .२ सनिदाने तपसि त्रिपृष्ठवासुदेष कथा
रायगिहे घिसनंदी घिसाहभूई यतस्स जुधराया। जुवरण्णो विस ई विसाहनंदी य इयरस्स ।।
--धर्मो ४७/१२४ रायगिह नयर विल्सनंदी राया महादेषी-गम्भुन्भषो य विसाहनंदी तणओ विसाहभूई जुवराया, धारिणी से भारिया। तीए पहाण-सुमिणय
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