Book Title: Vardhaman Jivan kosha Part 3
Author(s): Mohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
Publisher: Jain Darshan Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 522
________________ ( ४३९ ) भँवरलाल नाहटा, कलकत्ता । शास्त्र प्रमाणों से परिपूर्ण इस ग्रंथ में विद्वान लेखक ने नौ अध्यायों में प्रस्तुत विषय पर अच्छा प्रकाश डाला है । पं० चन्द्रभूषणमणि त्रिपाठी, राजगृह । उक्त चर्चा को पुनः चिन्तन का आयाम दिया है। उपस्थित करती है । लेखक ने काफी विस्तार के साथ पुस्तक एक अच्छी चिन्तन सामग्री दलसुख मालवणिया, अहमदाबाद । श्री चोरड़ियाजी ने इस विषय में जो परिश्रम किया है वह धन्यवाद के पात्र है । यह ग्रन्थ इस पूर्व प्रकाशित लेश्या कोश क्रिया-कोश की कोटिका ही है। इन ग्रन्थों में श्री चोरड़ियाजी का सहकार था । हमें आशा है कि वे आगे भी इस कोटि के ग्रन्थ देते रहेंगे। विशेषता यह है कि आगमों में जितने भी अवतरण इस विषय में उपलब्ध थे उनका संग्रह किया है। इतना ही नहीं आधुनिक काल के ग्रन्थों के भी अवतरण देकर ग्रन्थ को संशोधकों के लिए अत्यन्त उपादेय बनाया है - इसमें सन्देह नहीं है । GLORY OF INDIA, दिखी । 'मिथ्यात्वी का आध्यात्मिक विकास' यह पुस्तक अनेक विशिष्टताओं से युक्त है । एक मिथ्यात्वी भी सद्अनुष्ठानिक क्रिया से अपना आध्यात्मिक विकास कर सकता है । साम्प्रदायिक मतभेदों की बातें या तो आई ही नहीं है अथवा भिन्न-भिन्न दृष्टिकोणों का समभाव से उल्लेख कर दिया गया है। श्री चोरड़ियाजी ने विषय का प्रतिपादन बहुत ही सुन्दर और तलस्पर्शी ढंग से किया है, विद्वज्जन इसका मूल्यांकन करें । निःसन्देह दार्शनिक जगत के लिए चोरड़ियाजी की यह एक अप्रतिम देन है । मुनिश्री जशकरण, सुजानगढ़ । अनुमानतः लेखक ने इस ग्रन्थ को लिखने के Sardara ग्रन्थों का अवलोकन किया है । टीका भाष्यों के सुन्दर संदर्भों से पुस्तक अतीव आकर्षक बनी है । डा० भागचन्द्र जैन, नागपुर। विद्वान लेखक ने यह स्पष्ट करने का साधार प्रयत्न किया है कि मिथ्यात्वी का कब और किस प्रकार विकास हो सकता है । लेखक जौर प्रकाशक इसने सुन्दर ग्रन्थ के प्रकाशन के लिए बधाई के पात्र हैं । डा० दामोदर शास्त्री, दिल्ली । लेखक ने अपने इस ग्रन्थ में शोधसार समाविष्ट कर शोधार्थी द्विजनों के लिए मार्ग प्रशस्त किया है । यत्र यत्र पेचीदे प्रश्नों को उठाकर उसका सोदाहरण व शास्त्र सम्मत समाधान भी किया गया है । मुनिश्री राकेशकुमार, कलकत्ता । श्रीचन्द चौरड़िया के विशिष्ट ग्रन्थ 'मिथ्यात्वी का आध्यात्मिक विकास' में शास्त्रीय दार्शनिक दोनों दृष्टियों से महत्वपूर्ण प्रतिपादन हुआ है। जैन धर्म के तात्विक चिन्तन में रूचि रखनेवालों के लिए तो यह पुस्तक ज्ञानवर्द्धक और रसप्रद है ही, किन्तु साम्प्रदायिक अनाग्रह और वैचारिक उदारता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532